
हाथों में कलम या कि तुलकिा
आैर कुछ इन्द्रध्नुषी रंग
एक अतीत
सुनहरा खटटा मीठा
सारी बातें
अब यादें.......
क्यु याद है ना!
साथ् साथ् चले थे
उन पहचानी सी
सड़कों पर
जिसे आंख खोलते के साथ
भ्रर लिया था हमने,
अपनी आंखों में
जैसे, हवाआे को
सांसों मे,
साथ साथ हंसे थे,
झगड़े थे, रूठे थे
मने थे, खेले थे
ये सब बातें
अपने, हमारे बारे में,
जिन्हें हमने हां,
सिफर्र् हमने ही तो
देखा था, महसूसा था
आैर इस क्रम में
वक्त कैसे
आगे निकल आया
आैर हम
इस मोड़ पर
वक्त के साथ
बहुत कुछ पीछे....
बहुत पीछे छुट जाता है
"अपने होने की "
चाहत और शर्त पर!
फिर भी
बहुत स्वभाविक है न-
कि पुरानी तस्वीरे
पार्क में खेलते बच्चे
बहुत कुछ याद दिला जाते हैं
चुपके से........
जैसे, अपनी गुडि़या की शादी,
टीचर.टीचर का खेल
अमरूदों की चोरी।
आैर युं ही
स्मृतियों पर पड़ी गर्द
थोड़ी धुली
पुरानी कड़ी फिर जुड़ी
भुली नहीं ना!
"एक मुक आमंत्रण"
छिपा है दूर कहीं......
हमेशा ही!
अब उकेर भी दो
कुछ रेखाएं आड़ी, तिरछी
आैर..........
फैला दो
इन्द्रधनुषी रंगों को
उस सादे से पन्ने पर
स्वागत है तुम्हारा हमेशा ही।
एहसासों और भावनाओं से भारी हुई रचना है ये. निसंदेह रचना अपना असर कहीं गहरे तक रख छोड़ती है.
जवाब देंहटाएंभारी = भरी
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावनात्मकता के साथ.... सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंहर शब्द एक अहसास लिये हुये, सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंस्वागत है तुम्हारा हमेशा ही। सुन्दर अहसास
जवाब देंहटाएंस्वागत है बहुत सुन्दर भावमय रचना शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है, प्रवाहमय कविता. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआरंभ
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंस्म्रतियों की जिस तरह आप ने भावना के मीठे समूह में पिरोती हुयी एक प्रवाह मय कविता लिखी उसके लिए आप का बहुत बहुत धन्यबाद
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
अच्छी लगी आपकी रचना .. इस नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंस्वागत सिर्फ नहीं तुम्हारा
जवाब देंहटाएंहर आगत का करना
धर्म हो हमारा
बनता है अपनापा।