लड़कियों और महिलाओं पर तेजाबी हमले के मामले में कर्नाटक भी पीछे नहीं है। कार्तिका परमेश्वरन न,डा. महालक्ष्मी, श्रृति, हसीना हुसैन ये कुछ ऐसे नाम हैं जिनके वजूद को तेजाबी आग में झुलसा कर खत्म कर देने की कोशिश की गई, वो भी उनके किसी के जबरदस्ती के प्यार को स्वीकार नहीं करने के इंसानी और बुनियादी अधिकार के कारण। ज्यादातर मामलों में एकतरफा प्यार में ठुकराए पुरुष के अहम् ने -तुम मेरी नहीं हो सकती तो तुम्हें किसी और का भी नहीं होने दुंगा, मानसिकता ने इन जिंदगी से भरे पढ़ते-लिखते, अपना काम करते भविष्य के सपने बुनते खुबसूरत चेहरों में हमेशा के लिए अंधेरा भर दिया। बंगलूरू में एसिड हमले की शिकार हुई लड़कियों और महिलाओं के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था कैंपेन एंड स्ट्रगल अगेन्स्ट एस्डि अटैक आॅन वुमैन (सीएसएएएडब्ल्यू ) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस साल में केवल कर्नाटक में ही एसिड हमले 68 से ज्यादा मामले हुए हैं। कर्नाटक में सीएसएएएडब्ल्यू लगातार कई सालों से इनकी लड़ाई लड़ रहा है पर कोई खास नतीजा नहीं मिलने और सरकार की ओर से केवल आश्वासन, इस संस्था के साथ जुड़कर अपनी लड़ाई लड़ रही पीडि़तों के हौसलों को तोड़ रहा है। इस लड़ाई में उनकी सक्रियता और भागीदारी लगातार कम हो रही है। एसिड हमले की शिकार हसीना हुसैन से बात करने पर इसकी वजह का भी पता चल गया। उनके परिवार ने लगातार सात साल अदालत में उनकी लड़ाई लड़ी और कर्नाटक हाई कोर्ट ने आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई साथ ही एसिड हमले की शिकार पीडि़तों के पुर्नवास के लिए कर्नाटक सरकार को निर्देष जारी किए, जिसके तहत प्लास्टिक सर्जरी का पूरा खर्च सरकार द्वारा वहन करना, पीडि़तो के संपूर्ण अदालती खर्च उठाना और पीडि़ता का पुर्नवास होने तक उनकी पूरी देखभाल। कर्नाटक हाई कोर्ट के इस निर्देष से हसीना और उनके परिवार को बहुत राहत मिली थी और इंसाफ की उम्मीद जगी थी पर हकीकत कुछ और है। हसीना कहती हैं-अब 14 साल हो गए पर कुछ हासिल नहीं हुआ। अब तक सरकार से 1 लाख 80 हजार रूपए मिले, जबकि मेरे ईलाज में 20 लाख खर्च हो चुके हैं, मुझे आंखों से दिखता नहीं है। मेरे पिता ने अपना घर बेचकर मेरा ईलाज कराया थोड़ी मदद आम लोगों ने कर दी। पुर्नवास होने तक पीडि़तों की पूरी देखभाल की बात करते हैं पर सरकार द्वारा हर पीडि़त को 1 लाख 80 हजार थमा कर सब ठीक है मान लिया जाता है। हसीना इतनी मायुस हैं कि कहती हैं प्लीज मेरी स्टोरी नहीं लिखिए, हमारी कहानी छपती है और अगले दिन रद्दी की खबर बन जाती है। मैं नहीं चाहती कोई मेरी तस्वीर छापें, हमाले लिए मुद्दा महत्वपूर्ण है। दरअसल, कुछ होना होता तो मेरे बारे में इतना लिखा गया कि अब तक सब कुछ हो जाना चाहिए था। लेकिन अभी भी सिर्फ मैं ही नहीं मेरा परिवार भी इस हादसे और इसकी वजह से मिले षारीरिक, मानसिक और आर्थिक चोट से बाहर नहीं आ पाया है। हसीना जितनी सषंकित सरकार की ओर से है उतना ही इन लोगों की लड़ाई लड़ने वाली संस्थाओ से भी। हालांकि सभी के बारे में उनकी एक राय नहीं है पर ये जरूर कहती हैं कि-हमारा दुरूपयोग हुआ है कुछ लोग हमारे नाम पर लाखों रूपए अनुदान में हासिल कर लेते हैं और पीडि़तों को कुछ हजार थमा देते हैं।
हसीना, पढ़ लिख का नौकरी कर रही थी लेकिन अपने इंप्लायर से ही एसिड हमले की शिकार हो गई। 1999 में उनके पास ढ़रों सपने थे और आज उनका कोई फ्यूचर प्लान नहीं है। वो बस इतना चाहती हैं एसिड हमले को रोका जाना, आरोपी को सजा मिलना और पीडि़त का पुर्नवास इसी पर फोकस किया जाना चाहिए। उनके जैसी और पीडि़तों के बारे में उनसे जानकारी मांगने पर वो कहती हैं-सीसा ने दो साल से काम करना लगभग बंद कर दिया है, उसके मार्फत हम बहुत से पीडि़त आपस में संपर्क में थे और हमने खुद को इंसाफ दिलाने की आखिरी हद तक अधिकतम कोषिषें कर ली, पर इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता आप किसी से भी बात कर लें सब यहीं कहेंगी। पुरुषों की सोच में बदलाव ऐसे हमलों पर रोक और पीडि़तों के ईलाज व पुर्नवास के साथ उनकी शिक्षा और काबिलियत के मुताबिक काम, उन्हें यही चाहिए।
यही कहें कि जहाँ उम्मीद हो जिसकी ,वहां नहीं मिलता !!
जवाब देंहटाएंचिन्तनीय स्थितियाँ..
जवाब देंहटाएंहद है..... चिंता की बात तो पहले से ही थी, स्थिति अब और भी चिंतनीय होती जा रही है।
जवाब देंहटाएंन जाने कहाँ जा रहे हैं हम हालात तो पहले ही बुरे थे और अब स्थिति और भी बाद से बत्तर होती चली जा रही है।
जवाब देंहटाएंवाणी गीत,प्रवीण पाण्डेय,Shah Nawaz और Pallavi saxena जी, शुक्रिया आप सभी का!
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