कन्नड़ फ़िल्मों के दो अभिनेताओं पर घरेलू उत्पीड़न के आरोप हैं लेकिन इससे उनकी फ़िल्मों की सफलता प्रभावित नहीं हुई। हिंसा की शिकार पत्नियां भी उन्हें माफ़ करती आयी हैं। मनोरमा की रिपोर्ट (Public Agenda)
चाहे कोई स्थापित अभिनेत्री हो या किसी फिल्मी सितारे की पत्नी, औरतों का दर्जा दोयम ही होता है । कुछ ऐसा ही मानते हैं कन्नड़ फल्मों के स्टार अभिनेता। बीवियों की पिटाई करना इन दिनों उनका दूसरा शौक बन गया है। और बाद में उनकी पत्नियों और प्रशंसकों से उन्हें माफी भी मिल जाती है। इस सबके बावजूद उनकी फिल्में पहले की ही तरह सुपर हिट होती रहती हैं। ऐसे ही एक कन्नड़ नायक के खलनायक बनने का हाई वोल्टेज ड्रामा पिछले महीने बंगलुरू में देखने को मिला। कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार टी दर्शन अपनी पत्नी की पिटाई के आरोप में जेल भेजे गये, फिर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने पत्नी के साथ अपने प्रशंसको से माफी भी मांग ली। यही नहीं, उन्होंने फिर एक यात्रा का नाटक भी रचा। एक और कन्नड़ अभिनेता प्रशांत भी अपनी पत्नी शशिरेखा को मारने-पीटने और लगातार प्रताड़ित करने के आरोप में गिरफ्तार रहे। दोनों मामलों ने साबित किया कि कन्नड़ फिल्म उद्योग और वहां का समाज औरतों के लिए अभी भी नहीं बदला है। कन्नड़ फिल्मों के बड़े नायक टी दर्शन की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सोना उगलती रही हैं। लेकिन पर्दे का यह नायक घर में खलनायक बन गया। शादी के दस साल बाद उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी को थाने में अपने ही पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी पड़ी। अपनी शिकायत में उन्होंने कहा कि दर्शन ने उन्हें और उनके तीन साल के बेटे को न सिर्फ प्रताड़ित किया, बल्कि जान से मारने की कोशिश भी की। दर्शन ने सिगरेट से विजयलक्ष्मी के हाथों को जलाया और चप्पल से पटाई की। दर्शन को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन जेल में उनकी तबीयत खराब हो गयी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बाद में विजयलक्ष्मी उनसे मिलने अस्पताल गयीं और फिर अपनी बात से पलट गयीं। चोट लगने का कारण बाथरूम में पैर फिसल जाना बताने लगीं। उन्होंने पति पर लगाये सारे आरोप भी वापस ले लिये, लेकिन इसके बावजूद बंगलुरू की दोनों निचली अदालतों ने दर्शन की जमानत याचिका खारिज कर दी। लेकिन आखिरकार कर्नाटक उच्च न्यायालय से उन्हें जमानत मिल गयी। विजयलक्ष्मी ने मीडिया के सामने स्वीकार किया कि घर के झगड़े को बाहर लाना उनकी नासमझी थी। दर्शन ने भी इस पूरे प्रकरण के लिए माफी मांगी और एक अच्छा पति और पिता बनने की कसमें खायीं। लोगों का मानना है कि दर्शन के "पश्चाताप' का कारण यह था कि अगले कुछ ही दिनों में उनकी फिल्म "सारथि' रिलीज होने वाली थी। सारथि के रिलीज होने से पहले दर्शन को अपनी छवि की चिंता सताने लगी थी इसलिए उन्होंने फिल्म के प्रचार के लिए "यात्रा' की और इस दौरान लोगों से माफी मांगी। हैरानी की बात यह रही कि बंगलुरू से लेकर मांड्या, मैसूर, चित्रदुर्गा तुमकूर और दावणगेरे सभी जगह लोगों ने दर्शन को हाथों-हाथ लिया, उसका घंटों इंतजार किया, यहां तक कि कई जगहों पर पुलिस को हल्का लाठी चार्ज भी करना पड़ा। बकौल दर्शन, "सारथि' की सफलता और यात्रा में मिले जन-समर्थन ने उन्हें लोगों का आभारी बना दिया है और जो हुआ, उसके लिए वे बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं। दरअसल कई बार औरतों के मामले में मर्द संवेदनशीलता की हदें तोड़ते आये हैं। औरतें मर्दो की दुनिया में सिर्फ गैर-बराबरी ही नहीं, तमाम किस्म के हिंसक वार भी झेलती आयी हैं। मध्य या उच्च वर्ग में होने वाली ऐसी घटनाएं अक्सर घर की दीवारों के अंदर ही दब जाती हैं। बड़े स्टार जो परदे पर अक्सर आदर्शवादी नायक के रूप में अन्याय के खिलाफ खड़े दिखते हैं, वे भी यह भूल जाते हैं कि निजी जीवन से भी उन्हें ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। दर्शन भी कन्नड़ फिल्मों के ऐसे ही स्टार नायक रहे हैं, इसलिए पत्नी से मनमुटांव होने पर उनसे परिपक्व व्यवहार की उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने परदे पर अपनी छवि के विपरीत आचरण किया। कन्नड़ फिल्म उद्योग के अंदर घटे ऐसे कई उदाहरणों से यह भी साफ हुआ कि सामाजिक संदेश केवल परदे पर ही दी जानेवाली चीज है। कहा जाता है कि यह मनमुटाव एक अभिनेत्री निकिता ठुकराल से उनकी निकटता और उनके साथ फिल्मों में काम करने को लेकर हुआ। कन्नड़ फिल्म उद्योग ने तीन साल के लिए निकिता ठुकराल पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन दर्शन को उनकी कारगुजारियों के बावजूद सहयोग और समर्थन ही मिला। इससे पता चलता है कि ग्लैमर की दुनिया में भी लोगों की सोच महिलाओं के संदर्भ में कितनी संकीर्ण है। फिल्मी नायकों को पसंद करने वाली जनता को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका नायक असल जिंदगी में कैसा है। दर्शन को हिरासत में लिये जाने की खबर मिलते ही पूरा कन्नड़ फिल्म उद्योग विजयनगर पुलिस थाना दर्शन को छुड़़ाने पहुंच गया था। फिल्म उद्योग के बड़े-बड़े नामों ने दर्शन की पत्नी विजयलक्ष्मी पर ही समझौता करने का दबाव बनाया। यहां तक कि जनता ने, जिसमें महिलाएं भी बड़ी तादाद में शामिल थीं, दर्शन के समर्थन में प्रदर्शन किया। इसी दबाव में दर्शन पर लगे हत्या की कोशिशों के आरोप धारा 107 को, जिसके तहत जमानत मुश्किल होती है, धारा 324 में बदल दिया गया। बहरहाल, दर्शन और विजयलक्ष्मी प्रकरण ने फिर एक बार साबित किया कि औरतें अपने खिलाफ हो रही घरेलू हिंसा के मामलों में कितनी लचीली और समझौतावादी हैं। अपनी सामाजिक सुरक्षा का सवाल और बच्चों का भविष्य उन्हें अपने ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ कदम आगे बढ़ाने के बावजूद पीछे हटाने को मजबूर कर देता है। दरअसल, घरेलू हिंसा को पारिवारिक और सामाजिक दायरे में गंभीर अपराध नहीं माना जाता और ज्यादातर मामलों में तो पत्नी को भी ये एक सामान्य सी बात लगती है। दर्शन और विजयलक्ष्मी के मामले में दर्शन की आलोचना करने के बाद ज्यादातर लोगों की पहली प्रतिक्रिया यही रही कि ये आपस का मामला था, जिसे विजयलक्ष्मी को आपस में सुलझाना चाहिए था। "सारथि' की सफलता भी इस बात की तसदीक करती है कि समाज पत्नी के साथ की गयी मारपीट को कोई गंभीर अपराध नहीं मानता और इससे अभिनेता के कैरियर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। हैरानी की बात नहीं कि हाल ही में महिलाओं पर शोध करनेवाली अंतरराष्ट्रीय संस्था आईसीआरडब्ल्यू के सर्वेक्षण में 65 फीसद पुरुषों ने माना कि कभी-कभी महिलाओं को मारना जरूरी होता है। बंगलुरू में भी एक सर्वेक्षण में 35 फीसद लोगों को दर्शन का अपराध बड़ा नहीं लगा। अठारह फीसद लोगों की निगाह में यह बहुत आम बात है और 65 फीसद लोग तो मुद्दे को सार्वजनिक करने के कारण विजयलक्ष्मी को ही गलत मान रहे हैं। वैसे हाल ही के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आयी है कि देश में 40 फीसद शादी-शुदा महिलाएं अपने घरों में पतियों से शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार होती हैं और 51 प्रतिशत भारतीय पुरुष और 54 प्रतिशत भारतीय महिलाओं को पत्नियों को मारा-पीटा जाना स्वीकार्य और वैध लगता है। दर्शन प्रकरण ने कन्नड़ फिल्म उद्योग के दोमुंहे चेहरे को भी उजागर किया है जो कमोबेश देश के पूरे शो बिजनेस का एक सच है। यहां बातें बड़ी-बड़ी होती हैं लेकिन हकीकत में औरतों और मर्दो में बराबरी नहीं है, चाहे वह पारिश्रमिक की बात हो या शादी के बाद काम करने की स्वीकार्यता की बात। हिंदी फिल्म उद्योग में भी जीनत अमान, नीतू सिंह, और ऐश्वर्या राय तक घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं। वैसे, घरेलू हिंसा कानून 2005 घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए एक कारगर सुरक्षा कवच है। मसलन इसके तहत घरेलू हिंसा की शिकार महिला के लिए हर तरह की कानूनी सहायता मुफ्त मिलती है और दर्ज शिकायत पर कार्रवाई करने के लिए अधिकतम तीन दिन का ही समय दिया गया है। कोई भी महिला सीधे मजिस्ट्रेट के पास शिकायत लेकर जा सकती है।
चाहे कोई स्थापित अभिनेत्री हो या किसी फिल्मी सितारे की पत्नी, औरतों का दर्जा दोयम ही होता है । कुछ ऐसा ही मानते हैं कन्नड़ फल्मों के स्टार अभिनेता। बीवियों की पिटाई करना इन दिनों उनका दूसरा शौक बन गया है। और बाद में उनकी पत्नियों और प्रशंसकों से उन्हें माफी भी मिल जाती है। इस सबके बावजूद उनकी फिल्में पहले की ही तरह सुपर हिट होती रहती हैं। ऐसे ही एक कन्नड़ नायक के खलनायक बनने का हाई वोल्टेज ड्रामा पिछले महीने बंगलुरू में देखने को मिला। कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार टी दर्शन अपनी पत्नी की पिटाई के आरोप में जेल भेजे गये, फिर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने पत्नी के साथ अपने प्रशंसको से माफी भी मांग ली। यही नहीं, उन्होंने फिर एक यात्रा का नाटक भी रचा। एक और कन्नड़ अभिनेता प्रशांत भी अपनी पत्नी शशिरेखा को मारने-पीटने और लगातार प्रताड़ित करने के आरोप में गिरफ्तार रहे। दोनों मामलों ने साबित किया कि कन्नड़ फिल्म उद्योग और वहां का समाज औरतों के लिए अभी भी नहीं बदला है। कन्नड़ फिल्मों के बड़े नायक टी दर्शन की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सोना उगलती रही हैं। लेकिन पर्दे का यह नायक घर में खलनायक बन गया। शादी के दस साल बाद उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी को थाने में अपने ही पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी पड़ी। अपनी शिकायत में उन्होंने कहा कि दर्शन ने उन्हें और उनके तीन साल के बेटे को न सिर्फ प्रताड़ित किया, बल्कि जान से मारने की कोशिश भी की। दर्शन ने सिगरेट से विजयलक्ष्मी के हाथों को जलाया और चप्पल से पटाई की। दर्शन को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन जेल में उनकी तबीयत खराब हो गयी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बाद में विजयलक्ष्मी उनसे मिलने अस्पताल गयीं और फिर अपनी बात से पलट गयीं। चोट लगने का कारण बाथरूम में पैर फिसल जाना बताने लगीं। उन्होंने पति पर लगाये सारे आरोप भी वापस ले लिये, लेकिन इसके बावजूद बंगलुरू की दोनों निचली अदालतों ने दर्शन की जमानत याचिका खारिज कर दी। लेकिन आखिरकार कर्नाटक उच्च न्यायालय से उन्हें जमानत मिल गयी। विजयलक्ष्मी ने मीडिया के सामने स्वीकार किया कि घर के झगड़े को बाहर लाना उनकी नासमझी थी। दर्शन ने भी इस पूरे प्रकरण के लिए माफी मांगी और एक अच्छा पति और पिता बनने की कसमें खायीं। लोगों का मानना है कि दर्शन के "पश्चाताप' का कारण यह था कि अगले कुछ ही दिनों में उनकी फिल्म "सारथि' रिलीज होने वाली थी। सारथि के रिलीज होने से पहले दर्शन को अपनी छवि की चिंता सताने लगी थी इसलिए उन्होंने फिल्म के प्रचार के लिए "यात्रा' की और इस दौरान लोगों से माफी मांगी। हैरानी की बात यह रही कि बंगलुरू से लेकर मांड्या, मैसूर, चित्रदुर्गा तुमकूर और दावणगेरे सभी जगह लोगों ने दर्शन को हाथों-हाथ लिया, उसका घंटों इंतजार किया, यहां तक कि कई जगहों पर पुलिस को हल्का लाठी चार्ज भी करना पड़ा। बकौल दर्शन, "सारथि' की सफलता और यात्रा में मिले जन-समर्थन ने उन्हें लोगों का आभारी बना दिया है और जो हुआ, उसके लिए वे बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं। दरअसल कई बार औरतों के मामले में मर्द संवेदनशीलता की हदें तोड़ते आये हैं। औरतें मर्दो की दुनिया में सिर्फ गैर-बराबरी ही नहीं, तमाम किस्म के हिंसक वार भी झेलती आयी हैं। मध्य या उच्च वर्ग में होने वाली ऐसी घटनाएं अक्सर घर की दीवारों के अंदर ही दब जाती हैं। बड़े स्टार जो परदे पर अक्सर आदर्शवादी नायक के रूप में अन्याय के खिलाफ खड़े दिखते हैं, वे भी यह भूल जाते हैं कि निजी जीवन से भी उन्हें ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। दर्शन भी कन्नड़ फिल्मों के ऐसे ही स्टार नायक रहे हैं, इसलिए पत्नी से मनमुटांव होने पर उनसे परिपक्व व्यवहार की उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने परदे पर अपनी छवि के विपरीत आचरण किया। कन्नड़ फिल्म उद्योग के अंदर घटे ऐसे कई उदाहरणों से यह भी साफ हुआ कि सामाजिक संदेश केवल परदे पर ही दी जानेवाली चीज है। कहा जाता है कि यह मनमुटाव एक अभिनेत्री निकिता ठुकराल से उनकी निकटता और उनके साथ फिल्मों में काम करने को लेकर हुआ। कन्नड़ फिल्म उद्योग ने तीन साल के लिए निकिता ठुकराल पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन दर्शन को उनकी कारगुजारियों के बावजूद सहयोग और समर्थन ही मिला। इससे पता चलता है कि ग्लैमर की दुनिया में भी लोगों की सोच महिलाओं के संदर्भ में कितनी संकीर्ण है। फिल्मी नायकों को पसंद करने वाली जनता को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका नायक असल जिंदगी में कैसा है। दर्शन को हिरासत में लिये जाने की खबर मिलते ही पूरा कन्नड़ फिल्म उद्योग विजयनगर पुलिस थाना दर्शन को छुड़़ाने पहुंच गया था। फिल्म उद्योग के बड़े-बड़े नामों ने दर्शन की पत्नी विजयलक्ष्मी पर ही समझौता करने का दबाव बनाया। यहां तक कि जनता ने, जिसमें महिलाएं भी बड़ी तादाद में शामिल थीं, दर्शन के समर्थन में प्रदर्शन किया। इसी दबाव में दर्शन पर लगे हत्या की कोशिशों के आरोप धारा 107 को, जिसके तहत जमानत मुश्किल होती है, धारा 324 में बदल दिया गया। बहरहाल, दर्शन और विजयलक्ष्मी प्रकरण ने फिर एक बार साबित किया कि औरतें अपने खिलाफ हो रही घरेलू हिंसा के मामलों में कितनी लचीली और समझौतावादी हैं। अपनी सामाजिक सुरक्षा का सवाल और बच्चों का भविष्य उन्हें अपने ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ कदम आगे बढ़ाने के बावजूद पीछे हटाने को मजबूर कर देता है। दरअसल, घरेलू हिंसा को पारिवारिक और सामाजिक दायरे में गंभीर अपराध नहीं माना जाता और ज्यादातर मामलों में तो पत्नी को भी ये एक सामान्य सी बात लगती है। दर्शन और विजयलक्ष्मी के मामले में दर्शन की आलोचना करने के बाद ज्यादातर लोगों की पहली प्रतिक्रिया यही रही कि ये आपस का मामला था, जिसे विजयलक्ष्मी को आपस में सुलझाना चाहिए था। "सारथि' की सफलता भी इस बात की तसदीक करती है कि समाज पत्नी के साथ की गयी मारपीट को कोई गंभीर अपराध नहीं मानता और इससे अभिनेता के कैरियर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। हैरानी की बात नहीं कि हाल ही में महिलाओं पर शोध करनेवाली अंतरराष्ट्रीय संस्था आईसीआरडब्ल्यू के सर्वेक्षण में 65 फीसद पुरुषों ने माना कि कभी-कभी महिलाओं को मारना जरूरी होता है। बंगलुरू में भी एक सर्वेक्षण में 35 फीसद लोगों को दर्शन का अपराध बड़ा नहीं लगा। अठारह फीसद लोगों की निगाह में यह बहुत आम बात है और 65 फीसद लोग तो मुद्दे को सार्वजनिक करने के कारण विजयलक्ष्मी को ही गलत मान रहे हैं। वैसे हाल ही के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आयी है कि देश में 40 फीसद शादी-शुदा महिलाएं अपने घरों में पतियों से शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार होती हैं और 51 प्रतिशत भारतीय पुरुष और 54 प्रतिशत भारतीय महिलाओं को पत्नियों को मारा-पीटा जाना स्वीकार्य और वैध लगता है। दर्शन प्रकरण ने कन्नड़ फिल्म उद्योग के दोमुंहे चेहरे को भी उजागर किया है जो कमोबेश देश के पूरे शो बिजनेस का एक सच है। यहां बातें बड़ी-बड़ी होती हैं लेकिन हकीकत में औरतों और मर्दो में बराबरी नहीं है, चाहे वह पारिश्रमिक की बात हो या शादी के बाद काम करने की स्वीकार्यता की बात। हिंदी फिल्म उद्योग में भी जीनत अमान, नीतू सिंह, और ऐश्वर्या राय तक घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं। वैसे, घरेलू हिंसा कानून 2005 घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए एक कारगर सुरक्षा कवच है। मसलन इसके तहत घरेलू हिंसा की शिकार महिला के लिए हर तरह की कानूनी सहायता मुफ्त मिलती है और दर्ज शिकायत पर कार्रवाई करने के लिए अधिकतम तीन दिन का ही समय दिया गया है। कोई भी महिला सीधे मजिस्ट्रेट के पास शिकायत लेकर जा सकती है।
यह घटना पढ़ी है, आश्चर्य होता है लोगों की सहनशीलता और स्मृति क्षमता पर।
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