बुधवार, 7 सितंबर 2011

यह अभी शुरुआत है


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कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े से मनोरमा की बातचीत
कर्नाटक के लोकायुक्त पद से रिटायर हुए न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े कर्नाटक में अवैध खनन पर अपनी जांच-रिपोर्ट के कारण चर्चा में रहे। हेगड़े जन लोकपाल विधेयक बनाने वाली संयुक्त समिति के सदस्य और अण्णा टीम के भी एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। बातचीत के मुख्य अंश :

आप अण्णा की टीम और सरकार के बीच बातचीत में अहम भूमिका निभा रहे थे?
नहीं, मैं कोई मध्यस्थता नहीं कर रहा था और न ही मेरे पास सरकार की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव आया। मैं अण्णा की टीम में हूं और हम एक टीम के तौर पर बातचीत के लिए हमेशा से तैयार रहे हैं।

क्या अण्णा के अनशन में दुराग्रह नहीं था?
अण्णा बिल्कुल सही कर रहे थे। सरकार को लोकपाल विधेयक पर व्यापक बहस से गुरेज नहीं होना चाहिए। आखिरकार सर्वसम्मति का ही विधेयक संसद में पारित होगा। लेकिन लोगों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है। संविधान ने सर्वोच्च सत्ता देश के नागरिकों को ही माना है और सरकार का यह कहना बेबुनियाद था कि हम लोग कानून बना रहे थे। हम सिर्फ सरकार को सुझाव दे रहे थे और संविधान ने ऐसा करने का हमें अधिकार दिया है। 

सरकार के रवैये पर आप क्या सोचते हैं?
जब यह आंदोलन शुरू हुआ था तो हमें उम्मीद नहीं थी कि लोगों का ऐसा साथ और समर्थन मिलेगा। जाहिर है, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आम आदमी भ्रष्टाचार से बेहद परेशान है। लोगों के पास अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के पैसे नहीं हैं, लेकिन जनता के ही करोड़ों-अरबों रुपये राजनेता घोटाले करके लूट रहे हैं। इस आंदोलन में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की हिस्सेदारी को इसी रूप में देखा जाना चाहिए। 

आप कर्नाटक के लोकायुक्त रहे हैं। क्या लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक में कोई समानता है?
कर्नाटक का लोकपाल रहते हुए मैंने सुओमोटो पावर के लिए काफी प्रयास किये। भाजपा सरकार से आश्वासन मिलने के बावजूद लोकायुक्त को मुख्यमंत्री या कैबिनेट के मंत्रियों के खिलाफ सुओमोटो पावर नहीं मिली। हां, उप-लोकायुक्त पहली श्रेणी के अधिकारियों और उससे नीचे चपरासी तक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत होने पर संज्ञान ले सकते हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत विशेष लोकायुक्त अदालत में दर्ज होने के कारण उनके खिलाफ मामला बना। 

अण्णा की टीम अपने विधेयक पर इतनी क्यों अड़ी रही?
हम बहस और बातचीत के लिए हमेशा तैयार थे। हमारा तर्क था कि सरकार को अण्णा टीम द्वारा सौंपे गये लोकपाल विधेयक के आठ मुद्दों पर एतराज है तो ठीक है, उन्हें छह मुद्दों पर राजी होने दीजिए और संसद में लेकर आने दीजिए। वैसे भी हम यह नहीं कह रहे कि जन-लोकपाल विधेयक हमने जैसा दिया है, वही पारित हो। हम चाहते हैं कि संसद में इस पर बहस हो, सरकार हमारी मांग और जनभावनाओं को जाने-समझे।

लोकपाल विधेयक भ्रष्टाचार रोकने में कितना कारगर होगा?
यह सच है कि केवल इस विधेयक से देश और समाज से भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म नहीं होगा, लेकिन कुछ तो फर्क पड़ेगा ही । 

इस आंदोलन के बाद आप लोगों की रणनीति क्या होगी?
हम चुनाव सुधार और सांसदों और विधायकों को वापस बुलाने या राइट टु रिकॉल के लिए मुहिम चलाने वाले हैं। अब हम रुकने वाले नहीं हैं। जनहित के अलग-अलग मुद्दों पर हम जनता को जागरूक करने उसके साथ मिलकर मुहिम चलाने का काम करते रहेंगे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. अगर वह केवल सुझाव थे तो 30 अगस्त तक बिल संसद में पास करने की ज़िद क्या थी? और पास नहीं होने पर मौत तक अनशन की धमकी को क्या कहा जाएगा?

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  2. शाहनवाज जी, संतोष हेगड़े ने ये कहा था कि अगर सरकार ६ मांग भी मान ले, तो अन्ना को अनशन ख़तम कर देना चाहिए, ये उनकी निजी राय थी, लेकिन ये इंटरव्यू एडिट हुआ है मैंने पब्लिक एजेंडा पत्रिका के साईट से कॉपी पेस्ट कर दिया है यहाँ!

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