मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

कितने दिन अमन-चैन

(Published in Public Agenda)
येदियुरप्पा गद्दी पाने को उतावले है। लेकिन अपने जिस चहेते सदानंद गौड़ा को उन्होंने कुर्सी पर बिठाया था वही आज उनकी राह का रोड़ा हैं। फ़िलहाल कर्नाटक भाजपा में तूफ़ान के आने से पहले की ख़ामोशी छायी है। मनोरमा की रिपोर्ट

कर्नाटक में जब येदियुरप्पा मुख्यमंत्री थे तो तीन बार कुछ ऐसा ही हाई वोल्टेज ड्रामा खेला गया जैसा पिछले दस दिनों से जारी है। तीनों बार वे अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे, हालांकि चौथी बार उन्हें कुर्सी छोड़नी ही पड़ी। उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे। अवैध खनन और भूमि आवंटन में अनियमितता के आरोपों के कारण जब उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ी थी तब भी उनके पास सत्तर से ऊपर विधायकों का समर्थन था, लेकिन चाहते हुए भी वे विद्रोही तेवर नहीं दिखा सके। कारण केंद्रीय नेतृत्व हर हाल में कर्नाटक में लगे दाग को साफ करना चाहता था। तब येदियुरप्पा के खास चहेते सदानंद गौड़ा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे।आज वही सदानंद गौड़ा येदियुरप्पा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। उस समय जगदीश शेट्टर अनंत कुमार खेमे की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। तब गुप्त मतदान से मुख्यमंत्री चुना गया था। गौड़ा को 66 मत मिले थे और शेट्टर को 52 ही। लेकिन राजनीति में कब पासा पलट जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता। अब वही अनंत कुमार और येदियुरप्पा करीब आ गये हैं और उन 70 विधायकों के साथ-साथ जगदीश शेट्टर भी येदियुरप्पा के साथ खड़े हैं। यहां तक कि बजट सत्र से पहले खुद को मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने की सूरत में येदियुरप्पा चाहते थे कि शेट्टर को वित्त मंत्री बना दिया जाये ताकि बजट गौड़ा नहीं शेट्टर पेश कर सकें। बहरहाल, इस पूरे प्रकरण में भाजपा की अंदरूनी राजनीति और अनुशासन की कलई खुल गयी। राज्य में पार्टी को बड़ी चुनौती विपक्षी दलों से नहीं, बल्कि अपने ही खेमों से मिल रही है। चुनाव सन् 2013 में होने हैं पर ऐसे ही हालात रहे तो मौजूदा सरकार का अपना कार्यकाल पूरा कर पाना मुश्किल लगता है। संकट की शुरुआत इसी महीने के पहले हफ्ते से हो गयी थी जब कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अवैध खनन के मामले में येदियुरप्पा पर लोकायुक्त पुलिस द्वारा दायर एफआईआर रद्द कर दी। गौरतलब है कि लोकायुक्त विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ येदियुरप्पा की ओर से कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील की गयी थी। चूंकि अवैध खनन पर जारी लोकायुक्त की रिपोर्ट में नाम आने पर ही पिछले साल जुलाई में येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा था, इसलिए उच्च न्यायालय द्वारा इस मामलें में क्लीन-चिट मिल जाने पर ही तार्किक रूप से मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी वापसी की बनती है।इसलिए येदियुरप्पा ने दवाब की राजनीति खेलनी शुरू की। पहले उन्होंने उडुपी-चिकमगलूर के उपचुनाव में प्रचार करने से इनकार कर दिया जबकि वे स्टार प्रचारक थे। पार्टी को यहां मिली हार बेशक उनके मन की मुराद थी। इससे वे यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि राज्य में उनके कद का नेता कोई नहीं, बल्कि जिस लिंगायत मतदाता का समर्थन उनके साथ है, भाजपा उसकी अनदेखी नहीं कर सकती। इसके अलावा येदियुरप्पा ने अपने एक उम्मीदवार को राज्यसभा में पहुंचाकर अपनी दमदार वापसी का संकेत दे दिया है। फिर बजट सत्र से पहले मुख्यमंत्री बदलने का अल्टीमेटम उनकी दूसरी चाल थी। येदियुरप्पा अड़ गये कि बतौर मुख्यमंत्री वे ही बजट पेश करेंगे। उन्होंने यह धमकी 55 विधायकों के साथ दी जिनके बल पर वे बंगलुरू के एक रिसॉर्ट में डेरा डाले हुए थे। एक दिन बाद 10 और विधायक उनके साथ शामिल हो गये। फिलहाल उनका दावा है कि सत्तर से ऊपर विधायक उनके साथ हैं। वर्तमान में भाजपा के 117 विधायक हैं और सरकार बनाने के लिए 112 विधायकों का समर्थन जरूरी है। 
वैसे  उच्च न्यायालय के इस फैसले को फिर सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है और उस पर फैसला आना बाकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने सेंट्रल एमपावर्ड कमेटी को यह निर्देश दिया है कि अवैध खनन के मामले में येदियुरप्पा और उनके परिवार की संलिप्तता की सीबीआई जांच आवश्यक है या नहीं, इस पर अपनी रिपोर्ट दे। जरूरी नहीं कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी येदियुरप्पा के हक में आये या उनपर सीबीआई जांच का मसला न बने। अतः अक्लमंदी यही थी कि फिलहाल राज्य के नेतृत्व में बदलाव नहीं किया जाये।दूसरी ओर, पिछले महीनों में सदानंद गौड़ा बगैर किसी विवाद के सरकार चलाते रहे हैं। उनकी छवि साफ और ईमानदार नेता की है। वे आरएसएस की पसंद भी हैं। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उनके द्वारा पेश किये गये बजट को सराहना मिली है हालांकि इस पूरे विवाद के कारण इस पर अपेक्षित चर्चा नहीं हो पायी। साथ ही वे राज्य के दूसरे सबसे बड़े समुदाय वोक्कालिगा से आते हैं और भाजपा की ओर से एचडी कुमारस्वामी का जवाब माने जाते हैं। लेकिन राज्य के जाति समीकरण में लिंगायत 20 फीसद से ऊपर हैं। इस समुदाय से येदियुरप्पा जैसा कोई और प्रभावशाली नेता भाजपा के पास नहीं है। भाजपा के गढ़ माने जाने वाले उडुपी-चिकमगलूर में पार्टी को पैंतालीस हजार मतों के अंतर से मिली हार चेतावनी है। कर्नाटक की जनता पिछले चार साल से भ्रष्टाचार के तमाम मामलों के साथ-साथ भाजपा का अंतर्कलह देख रही है जो अब अपने चरम पर है।आकलन के मुताबिक, इस उपचुनाव में करीब 24 हजार नये मतदाता जुड़े और पहली बार वोट दे रहे इन मतदाताओं का एक भी वोट भाजपा को नहीं मिला। यानी अगले चुनाव में मतदाता जाति के अलावा दूसरे गुंजाइश फैक्टर को नजरअंदाज नहीं करेगा। भाजपा के लिए चिंता की बात यह भी है कि लिंगायतों के दबदबे वाले राज्य के मठों का समर्थन अभी भी येदियुरप्पा के साथ ही है। ऐसे में येदियुरप्पा की ज्यादा दिनों तक अनदेखी नहीं की जा सकती। एक ओर येदियुरप्पा के बागी तेवर हैं तो दूसरी ओर सन् 2013 में चुनाव की नैया। बहरहाल, येदियुरप्पा की खामोशी तूफान से पहले की खामोशी भी हो सकती है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उन्हें बजट सत्र तक यथास्थिति बहाल रखने के एवज में अप्रैल में उनके हक में फैसला करने का आश्वासन दिया है। येदियुरप्पा यह दिखा चुके हैं कि 69 विधायकों का समर्थन उनके पास है और वे बजट सत्र में कभी भी सरकार गिरा सकने की स्थिति में थे। अब चालू सत्र तक उन्हें शांत कराकर भले ही गडकरी ने मामला सुलझा लिया हो, अप्रैल में पता चल जायेगा कि यह शांति कितने दिनों की थी।

सभी विधायक साथ हैं


कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष के एस ईश्वरप्पा से  मनोरमा की बातचीत

कर्नाटक में हालिया राजनीतिक घटनाक्रम पर आप क्या कहते हैं?
राजनीति में ऐसा होता रहता है। यह पार्टी का अंदरूनी मसला था। पार्टी से बड़ा कोई नहीं है, अंततः सभी को उसी के अनुसार चलना है। लेकिन मुझे मीडिया के एक वर्ग से शिकायत है, जिसने सदानंद गौड़ा के इस्तीफा देने और येदियुरप्पा के कुर्सी संभालने की लगातार खबरें देकर भ्रम की स्थिति बनाये रखी। हमारी ओर से इस संबंध में कोई लिखित बयान जारी नहीं किया गया था।

यह भी कहा जा रहा है कि येदियुरप्पा 30 मार्च तक ही शांत हुए हैं। उसके बाद वे फिर धमाका कर सकते हैं?
मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं। जहां तक मुझे पता है, इस बारे में पार्टी में एक राय है कि सदानंद गौड़ा मुख्यमंत्री बने रहेंगे। वैसे भी इस संदर्भ में पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व का ही फैसला अंतिम होगा। वैसे येदियुरप्पा इससे पहले भी कई बार ऐसी डेडलाइन दे चुके हैं। उसका नतीजा भी सबको मालूम ही है।

उनके पास 60-70 विधायकों का समर्थन है?
मेरी जानकारी में सभी विधायक पार्टी के साथ हैं और सभी को केंद्रीय नेतृत्व का हर फैसला मंजूर है। हमारा ध्यान अब अगले चुनाव पर है और पार्टी जाति और पैसों के आधार पर नहीं, बल्कि उम्मीदवारों की योग्यता और प्रदर्शन के आधार पर टिकट देगी। भाजपा में ब्लैकमेलिंग की राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है।

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से क्या येदियुरप्पा को यह आश्वासन मिला है कि बजट सत्र खत्म होते ही उनके हक में फैसला होगा?
केंद्रीय नेतृत्व जो भी फैसला करेगा, हम सब मानेगे।

यह भी कहा जा रहा है कि येदियुरप्पा मुख्यमंत्री नहीं तो कर्नाटक में भाजपा के अध्यक्ष पद चाहते हैं?
मुझे इस बारे में भी नहीं पता। दिल्ली में पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं से मेरा विचार-विमर्श हुआ। ऐसा कुछ तो नहीं कहा गया मुझसे। वैसे अगर हाईकमान कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष येदियुरप्पा को बनाते हैं तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं? केंद्रीय नेतृत्व का फैसला सभी को मान्य होगा।

उडुपी-चिकमगलूर के उपचुनाव में मिली हार पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? वह सीट पहले भाजपा के खाते में थी। येदियुरप्पा का प्रचार न करना पार्टी के लिए महंगा साबित हुआ?
हमारा ज्यादा नुकसान पार्टी में जारी अंतर्कलह से हुआ। खास तौर पर उपचुनाव से पहले येदियुरप्पा जी के साथ विधायकों का रिसॉर्ट में डेरा जमाना और सरकार पर अस्थिरता की तलवार लटका देना। जाहिर है, मतदाताओं में इससे भाजपा के प्रति बहुत नकारात्मक संदेश गया।

1 टिप्पणी:

  1. बोलेंगे अनचाही बातें,
    सामर्थ्य तुम्हारी पर शक होगा.
    शत्रुजनों की बातें सुनकर,
    क्या इससे बढ़ कर दुःख होगा?

    सही उदगार .

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