( पब्लिक एजेंडा में प्रकाशित )
इसी साल जुलाई के आखिर में लोकायुक्त के अवैध खनन रिपोर्ट में नाम आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री बी एस येदुरप्पा को ना चाहते हुए भी इस्तीफा देना पड़ा था। कांग्रेस और जेडीएस के लिए ये एक बड़े जष्न का मौका था, क्योंकि कर्नाटक में भाजपा के पैर जमाने में येदुरप्पा की बहुत अहम भूमिका रही है। ऐसे नेता और मुख्यमंत्री का भ्रश्टचारी होने के दाग के साथ विदा होना राज्य के विपक्षी दलो के लिए मंुहमांगी मुराद थी। इसी रिपोर्ट के कारण जनार्दन रेड्डी को भी पर्यटन मंत्रालय और करूणाकर रेड्डी को राजस्व मंत्रालय छोड़ना पड़ा। और इनके करीबी श्रीरामलू भी कैबिनेट से बाहर हुए। पर राजनीति में पासा पलटते देर नहीं लगता, चार महीने बाद ही ये बात कांग्रेस और जेडीएस को समझ में आ गई है। दरअसल, हाल ही में कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस ने राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ अवैध खनन मामलें में एफआईआर दर्ज की है जिसमें दो मुख्यमंत्री कांग्रेसी रहे हैं, मौजूदा विदेष मंत्री एस एम कृश्णा और धरम सिंह इसके अलावा जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी। इन तीनों पर अपने कार्यकाल में अवैध खनन को आसान बनाने के लिए नियम-कानून को ढ़ीला बनाने के आरोप हैं। इसके अलावा एफआईआर में 11 अफसरों के भी नाम हैं। एफआईआर बंगलूरू के सामाजिक कार्यकर्ता अब्राहम टी जोसेफ की षिकायत पर दर्ज की गई है, जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने राज्य के खजाने को भारी नुकसान पहंुचाया है। खासतौर पर एस एम कृश्णा ने लौह खदानों को लीज पर देने की मंजूरी देने के साथ-साथ वन और पर्यावरण विभाग के कड़े एतराज के बावजूद अवैध खनन के लिए रास्ता साफ करने हेतु वन विभाग की जमीन को गैर-संरक्षित घोशित कर दिया। टी अब्राहम की इस षिकायत पर लोकायुक्त अदालत ने पुलिस को जांच का आदेष दिया है और 6 जनवरी से पहले अपनी रिपोर्ट पेष करने को कहा है।देखा जाए तो ये कोई नई बात नहीं है जिस रिपोर्ट के कारण येदुरप्पा और रेड्डी बंधुओं की कुर्सी गई और उन्हें सलाखों के पीछे जाना पड़ा उसी रिपोर्ट में येदुरप्पा से पहले के समय के मामलों की भी जांच को समेटा गया है। लोकायुक्त ने साल 2000 तक के मामलों की जांच की है और अक्टूबर 1999 से 2004 मई तक एस एम कृश्णा कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे, फिर धरम सिंह और उसके बाद एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक में लोहे का बहुत समृद्ध भंडार है पर पिछले दस वर्शो में इसे लूटने की होड़ मची हुई है। सिर्फ मौजूदा भाजपा सरकार ही नहीं बल्कि पहले की एचडी कुमारस्वामी और धरम सिंह की सरकारों की भी इस लूट में हिस्सेदारी रही है। वर्श 2006 से 2009 के दौरान कुल 80 खदानों में से प्रतिदिन बीस हजार टन लौह-अयस्क की अवैध निकासी की गई है और इस निकासी के लिए रिस्क फी के तौर पर प्रतिदिन 50 लाख से ज्यादा राषि वसूली गई है। यानी करीब तीन हजार से पांच हजार करोड़ तक की वसूली की गई है। एस एम कृश्णा की ही बात करें तो अपने मुख्यमंत्रीकाल में उन्होंने 39 लाईसेंस मंजूर किए। उनके दामाद वी सिद्धार्थ के काॅफी चेन कैफे काॅफी डे की सफलता में उनका उस दौरान कर्नाटक का मुख्यमंत्री होना ही सबसे ज्यादा काम आया था। जबकि धरम सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में 43 खनन लाईसेंस का अनुमोदन किया था जिसमें 33 को मंजूरी केन्द्र की यूपीए सरकार से ही मिली थी। एच डी कुमारस्वामी ने 47 खनन लाईसेंस का अनुमोदन किया था जिसमें 22 को यूपीए सरकार ने मंजूर कर दिया था। यूपीए सरकार ने कर्नाटक में राश्ट्पति षासनकाल के ही दौरान 14 खनन लाईसेंस मंजूर किया जबकि येदुरप्पा ने तो केवल 22 लाईसेंस को अनुमोदित किया था जिसमें से केन्द्र सरकार ने 2 को ही मंजूर किया। जमीन की लूट में ही केवल येदुरप्पा ही नहीं, एस एम कृश्णा, देवगौड़ा और एच डी कुमारस्वामी भी पीछे नहीं रहे हैं। एस एम कृश्णा ने ही 11 हजार वनभूमि को खनन के लिए डिनोटिफाई किया था। लोकायुक्त रिपोर्ट में एचडीकुमार स्वामी का नाम दो मामलों में है, उन्होंने जंतकाल इंटरप््रााईजेज और साई व्येंकटेष्वरा मिनरल कंपनी के लाईसेंस को नियम-कानून की अनदेखी करते हुए व्यक्तिगत तौर पर मंजूरी दी। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में उनके परिवार के सदस्यों को 146 प्लाट अवैध रूप से आवंटित किए गए। उन्होने मुख्यमंत्री के तौर पर 550 करोड़ के ठेके को 1032 करोड़ में मंजूर कर दिया और राज्य के स्वामित्व वाली सिंचाई निगम कर्नाटक नीरवरि निगम के बैठक की अध्यक्षता करने के बाद ठेका हासिल करने वाली कंपनी को 103 करोड़ अग्रिम भुगतान करने की भी मंजूरी दे दी। साथ ही उनके परिवार द्वारा संचालित ट्रस्ट को खनन सेक्टर से ढ़ाई सौ करोड़ की रकम दान में और 168 करोड़ की राषि रिष्वत के तौर मिले। यानी कोई भी येदुरप्पा से पीछे नहीं रहा है। येदुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने के बाद लोहे का अवैध खनन अपने चरम पर पहुंच गया और इसे करने वाले राज्य के राजस्व और पर्यटन मंत्री बन गए। रिपोर्ट के मुताबिक 2009 मार्च से से 2010 मई के बीच 14 महीने में अवैध खनन से राज्य को 18 सौ करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है। 600 से ज्यादा सरकारी अधिकारियों पर लोहे के अवैध खनन के भ्रश्टाचार में संलग्न होने के आरोप हैं। कुल मिलाकर अवैध खनन की बुनियाद काफी पहले ही रखी और मजबूत की जा चुकी थी। इसलिए जुलाई में अपना इस्तीफा देते समय येदुरप्पा को भी लगा होगा कि उनके ग्रह-नक्षत्र वाकई सही नहीं है, एक ही किस्म के आरोप पर उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी और जेल जाना पड़ा, बाकी लोगों की ओर किसी का ध्यान भी नहीं गया। बहरहाल, अब येदुरप्पा को भी कुछ राहत महसूस हो रही होगी। साथ ही उनकी पार्टी भाजपा को भी, क्योकि नैतिकता के सवाल पर अब कांग्रेस से जवाब तलब करने की बारी उनकी है। जो पहले ही अपने एक और मंत्री पी चिदंबरम के 2जी मामले में फंसे होने के आरोपों के बचाव में लगी है।
सबकी खुदाई चल रही है..
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन पर की है मैंने अपनी पहली ब्लॉग चर्चा, इसमें आपकी पोस्ट भी सम्मिलित की गई है. आपसे मेरे इस पहले प्रयास की समीक्षा का अनुरोध है.
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य पर आधारित मेरा पहला ब्लॉग बुलेटिन - शाहनवाज़
hamam me sabhi nange he...bariya parastiti
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