शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

तेरी याद में एक पेड़



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चाह हो तो राह मिल ही जाती है ये बात बंगलूरू की जैनेट एग्नेश्वरण पर पूरी तरह से लागू होती है। पेशे से लैंडस्केप कलाकार जैनेट स्वभाव से ही प्रकृति प्रेमीरही हैं। बंगलूरू के अपेक्षाकृत ज्यादा हरे.भरे इलाके कोरमंगला में रहनेवाली जैनेट इस गार्डन सिटी को तेजी से ग्रे सिटी में बदलते देख अपनी ओर से कुछ पहल करने की सोच रही थीं। शहरीकरण और विकास के नाम पर बुनियादी ढ़ांचा खड़ा करने के लिए बेहिसाब पेड़ों की कटाई इन दिनों यहां आम है। अपने आस.पास की हरियाली से प्यार करने वाले हर शख्स को यह बात खलती भी है पर पहल कुछ ही लोग कर पाते हैंए जैनेट भी ऐसे ही कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने पेड़ों के कटने पर सवाल करने के बजाए पेड़ लगाने को तव्वजों दिया। नतीजा 2005 से अब तक वो बंगलूरू और इसके आस.पास 23 हजार 300 से ज्यादा पेड़ लगा चुकी हैं। दरअसल 2003 में अपने पति की मौत के बाद उनकी याद में उन्होंने पेड़ लगाने की शुरूआत की। फिर नवंबर 2005 में राजानेट एग्नेश्वरण  चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया और ट्री फॉर फ्री नाम से एक संगठन की नींव रखी।  आज इस संगठन के साथ बंगलूरू की ग्रीन ग्रुप्स की कंपनियां जुड़ चुकी हैं और आईटी क्षेत्र में काम करने वाले कई युवा भी वालेन्टियर बन कर पेड़ लगाने की इस मुहिम में निजी तौर पर शामिल हो रहे हैं। जाहिर है परिदृष्य कुछ तो बदल रहा है और भविष्य के प्रति भी कुछ उम्मीद जग रही है। शायद हरियाली बची रहेगी।
जैनेट के लिए शुरूआत इतनी आसान भी नहीं रही। लोगों के पास जाना उन्हें अपने घर के सामने मुफ्त में पेड़ लगाने के लिए जगह देने के लिए राजी करना और फिर ये कहना कि पेड़ लगा देने के बाद क्या वो उसकी देखभाल करेंगे, सब मुश्किल था लेकिन कुछ लोग तैयार हुए और पहले साल वो 250 पेड़ लगाने में कामयाब हुईं। लेकिन अब सब उन्हें और उनके काम को जान गए हैंए खुद उन्हें फोन करके पेड़ लगाने के लिए बुलाते हैं। यहां तक कि किसान भी। जैनेट से जिस दिन बात हुई वो बंगलूरू की बाहरी सीमा पर होस्कोटे में पेड़ लगा कर लौटी थीं। और खुश  होकर बताया अब हम फलों के पेड़ भी लगा रहे हैं। किसानों के खेत में जाकर मुफ्त में कलमी आम के पौधें लगा रहे हैं इसलिए अब उनसे भी हमें बुलावा आ रहा है। बंगलूरू के हाउसिंग कॉम्पलेक्स में रहने वाले भी खुद उन्हें फोन कर पेड़ लगाने का आमंत्रण देने लगे हैं। हाल ही में इन्होंने ऐसे कई आवासीय परिसरों में पेड़ लगाएं जहां पहले एक भी पेड़ नहीं थें। लेकिन उन्हें पेड़ लगाने का बुलावा ज्यादातर बनरगटा और कनकपूरा से आता है जो अभी भी ज्यादा हरे.भरे हैं। जैनेट चाहती हैं कि उन इलाकों के लोग उन्हें बुलाएं जहां अब सचमुच हरियाली कम हो गई है। गौरतलब है कि जैनेट पौध नहीं बांटती हैं अगर आपके पास पेड़ के लिए जगह है तो वहां पेड़ लगाती हैं। उसके बाद देखभाल की जिम्मेदारी पेड़ लगाने के लिए बुलावा देने वाले पर होती है।  
ट्री फॉर फ्री  के अब लोकप्रिय होने का कारण पुछने पर जैनेट कहती हैं हमारा मकसद लोगों को भावानात्मक तौर पेड़ों से जोड़ कर उनकी तादाद में इजाफा करना है। तभी लगाए जाने के बाद इन पेड़ों को संरक्षण मिलेगा जो उनके बचे रहने की गारंटी होगी। पेड़ों से प्यार बढ़ाने के लिए वो किसी की याद में पेड़ लगाने की सलाह देती हैंए तोहफे में पेड़ देने और लेने को प्रोत्साहित करती हैं। वो कहती हैं हम पेड़ लगाने के पैसे नहीं लेते, लोगों को अपने साथ लेकर पेड़ लगाते हैं शायद यही वजह है कि लोग अब ज्यादा संख्या में जुड़ रहे हैं। कुछ बदलाव लोगों में पर्यावरण के प्रति आयी जागरूकता के कारण भी है। इस संदर्भ में जैनेट खासतौर पर आईटी कंपनियों के युवाओं की तारीफ करती हैं जो काम के अलावा अपने आस.पास को लेकर खासे सजग हैं और काम के बाद फुरसत पाते ही कुछ सकारात्मक करने की ख्वाहिश  रखते हैं। जैनेट के साथ साफ्टवेयर कंपनियों में काम करने वाले ऐसे 150 सदस्य हैं जो पेड़ लगाने में अपना सहयोग देते हैं। इसके अलावा याहू, जेपी मोर्गन, हार्ले डेविडसन और अब सेल जैसी कंपनियां भी पेड़ लगाने के इनके इस अभियान में सहयोग कर रही हैं। लेकिन सरकार से इन्हें किसी किस्म का सहयोग नहीं मिला है। जैनेट कहती हैं पिछले दो साल हमें सरकारी नर्सरी से बांस के पौध भी नहीं मिल रहे। यानी यह पूरा अभियान लोगों की अपनी प्रतिबद्धता और ग्रीन ग्रुप्स की कंपनियों के कॉरपोरेट सहयोग से चल रहा है। जैनेट की हरियाली की यह मुहिम धीरे.धीरे अपने पांव पसार रही है बंगलूरू के अलावा आस.पास के जिलों और तमिलनाडू में भी उन्होंने पेड़ लगाएं हैं चाहे तो आप भी उनकी इस मुहिम में http://www.treesforfree.org के मार्फत शामिल हो सकते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. पेड़ लगाने में कम्पनियों को योगदान के लिये मनाना सराहनीय है।

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  2. मनोरमा जेनेट की मुहिम से मिलवाने के लिए शुक्रिया।

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