शनिवार, 3 जुलाई 2010

बिजली बेचने वाला गांव

(Inext के िलए िलखा गया लेख)


भारत की एक तिहाई आबादी के लिए बिजली अभी भी एक सपना ही है। गांव की बात छोड़ें, बड़े शहर यहां तक कि मेट्रो सिटीज भी बिजली की भारी किल्लत झेल रहे हैं। ऐसे में कोई गांव अपनी जरूरत की बिजली न सिर्फ खुद बना रहा हो बल्कि सरप्लस बिजली राज्य सरकार को बेच भी भी रहा हो तो आप क्या कहेंगे? यकीन नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा हो रहा है। कर्नाटक का काब्बीगेरे ग्राम पंचायत ऐसा ही एक गांव है, जो अब सारे देश के लिए एनवायरन्मेंट फ्रेडंली सस्टेनेबल डेवलपमेंट का एक उम्दा उदाहरण बन गया है। इस गांव ने रिन्यूयेबल एनर्जी स्रोतों के इस्तेमाल से अपनी तकदीर और तस्वीर बदल डाली है। और यह साबित कर रहा है कि सरकारी योजनाएं भी बहुत कारगर हो सकती हैं अगर स्थानीय जरूरतों के मुताबिक लोकल पार्टीसिपेशन से उसे लागू किया जाए तो।

गहरी हरियाली की चादर से ढंका कर्नाटक का काब्बीगेरे ग्राम पंचायत देश का पहला ऐसा गांव है जो स्टेट पावर ग्रिड यानी बंगलूरू इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी को अपनी बनायी हुई बिजली बेचता है और वो भी मामूली कीमत, 2.85 प्रति के.वाट की दर से। यही नहीं बिजली का उत्पादन भी गांव में ही पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से किया जाता है। दरअसल, ये कहानी शुरू हुई संयुक्त राष्ट्रसंघ-कर्नाटक सरकार के संयुक्त प्रयास से शुरू किए गए बायोमास पावर प्लांटस् प्रोजेक्ट से। यों तो शुरूआत हुई थी बिजली के मामले में इस गांव को इंडीपेंडेंट बनाने से लेकिन बिजली मुहैया कराने का यह प्रोजेक्ट अब गांव के चौरफा विकास और बदलाव की बुनियाद साबित हो चुका है। दरअसल, बायोमास पावर प्लांट लगाने की इस योजना से गांव के लोग बिजली के मामले में आत्मनिर्भर तो हो ही गए है आर्थिक तौर पर भी मजबूत हुए हैं। साथ ही सरप्लस बिजली बेच भी रहे हैं। बायोमास प्रोजेक्ट पेड़ों र्से इंधन हासिल करता है, बायोमास, कार्बन न्यूट्रल होता है यानी इससे कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता है। इसके लिए यूकेलिप्टस और अन्य पेड़ों की जरूरत होती है, यानी आस पास हरियाली बढ़ाना होता है। जाहिर है बिजली में इंडीपेंडेंट होने की यह योजना एक साथ कई और मौके उपलब्ध कराती है।

काब्बीगेरे की सफलता की कहानी, यूएनडीपी के बायोमास एनर्जी फाॅर रूरल इंडिया प्रोग्राम का नतीजा है।जिसका इंप्लीमेंटेशन ग्लोबल एनवायरन्मेंट फेसिलिटी, भारत-कनाडा फेसिलिटी और कर्नाटक सरकार के ग्रामीण विकास और पंचायती राज के सहयोग से संभव हो पाया है। इस योजना के तहत 250, 250 और 500 के.वाट क्षमता के तीन छोटे पावर प्लांट लगाए गए जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध बायोमास का इस्तेमाल कर बिजली बनाते है। इन प्लांटों के द्वारा 2007 से अब तक लगभग 400,000 कि.वाट बिजली पैदा की जा चुकी है।

एक छोटी सी लेकिन बुनियादी जरूरत बिलजी की उपलब्धता लोगों के जीवन को किस कदर बदल देती है इस गांव में देखा जा सकता है। यहां अब खाना बनाना आसान हो गया है। पढ़ने, लिखने के लिए लड़कियों और महिलाओं को दूसरे कामों के लिए ज्यादा समय मिलने लगा है, जलावन के लिए लकड़ियों के इंतजाम में लगने वाले समय की बचत हो रही है, पानी सुलभ हो गया है। बिजली की उपलब्धता के कारण अब गांव में 130 बोरवेल हैं, जाहिर है इससे सिंचाई आसान हो गई है और खेती की तस्वीर बदल गई है। गांव के लोगों की आमदनी में 20 प्रतिशत का इजाफा इसका सबूत है। साथ ही पावर प्लांट में स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। जिन्हें सरकार प्रशिक्षण देती है। यह योजना न सिर्फ पर्यावरण के लिए फायदेमंद साबित हुई है बल्कि इसी प्रोजेक्ट के तहत 51 गोबर-गैस प्लांट भी लगाए गए हैं। जिससे लगभग पौने दो सौ घरों में बगैर किसी अतिरिक्त लागत के स्वच्छ व प्रदूषण-मुक्त कुकिंग ईंधन भी उपलब्ध हो जा रहा है। बायोगैस प्लांट स्थानीय स्वयं-सहायता समूहों के नर्सरियों से आॅरगेनिक कचड़ा भी लेते हैं। इस तरह हािशए पर रहने वाले समुदायों की महिलाओं को भी आमदनी का जरिया मिल गया है।

दरअसल, यह योजना और इसकी सफलता अपने आप में एक बड़ी उम्मीद की किरण है। यदि कोिशश की जाए तो बिजली,पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते देश के बाकी गांव भी न सिर्फ आत्मनिर्भर हो सकते हैं बल्कि उनका भी पूरी तरह से कायाकल्प हो सकता है।