मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

सुरों से सवंरता बचपन

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हममें से बहुत से लोग सफल होते हैं शोहरत और दौलत सब कमा लेते हैं पर जिस मिट्टी, जिस गांव, जिस देश , से हम आते हैं उसे उसका बकाया वापस लौटाने लिए बहुत कम ही लोग वापस मुड़ते हैं। अमेरिका के बे-एरिया में रहने वाले कर्नाटक के वादिराजा भट्ट और उनके दो दोस्त एच सी श्रीनिवास और अशोक कुमार ऐसे ही लोगों में से हैं। कुछ साल पहले अपनी मिट्टी का कर्ज चुकाने की जो छोटी सी मुहिम उन्होंने चलायी, अब उसका असर दिखने लगा है। और कर्नाटक और तमिलनाड् के दूर-दराज के गांवों के उन स्कूलों की सूरत बदलने लगी हैं जहां बच्चों को एक ही कमरे के टूटे-फृटे स्कूलों में पढ़ना होता था वो भी बगैर पानी, बिजली और टाॅयलेट जैसी बुनियादी सुविधाओं के। अब यही स्कूल पक्की इमारत में चल रहे हैं वो भी सभी बुनियादी सुविधाओं के साथ। इनकी इस मुहिम का नाम है ‘वन स्कूल एट ए टाईम’ या ‘ओसाट’।


दरअसल, कुछ करने की ख्वाहिश हो तो रास्ते निकल ही आते हैं। ऐसी हर सक्सेस स्टोरी के बारे में जानने-पढ़ने के बाद यही समझ आता है। इन तीन दोस्तों के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, कुछ साल पहले जब ये कर्नाटक आएं तो भट्ट राज्य के दक्षिण कन्नडा जिले में स्थित अपने गांव बाजेगोली भी गए। लेकिन वहां के स्कूल की हालात देखकर उन्हें खासी परेशानी हुई। गांव के सारे बच्चों के लिए वहां एक ही स्कूल था, जो एक कमरे में चलता था अब वो कमरा भी एकदम खस्ताहालत में था। पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं तो बहुत दूर की बात थी। वापस अमेरिका आने पर उन्होंने संगीत के जरिए इस स्कूल के लिए फंड जमा करने की सोचा। और रागा नाम से एक संगीत मंडली बनायी। इसी तरह काटे नाम से थियेटर ग्रुप भी बनाया। संगीत और कल्चरल प्रोग्राम के जरिए उनकी फंड जमा करने की स्कीम रंग लायी जब अमेरिका में आयोजित रागा म्यूजिक कंसर्ट सुपरहिट रहा। बाजेगोली के खस्ताहाल स्कूल की हालात सुधरी तो बच्चों और उनके माता-पिता के चेहरे की मुस्कुराहट ने उन्हें अब इस काम को मिशन बनाने की प्रेरणा दी। अब तक ये ग्रूप पांच स्कूल की सूरत पूरी तरह से बदल चुका है। और दो स्कूल में इनका काम चल रहा है।

उनके काम करने का तरीका बहुत आसान है, तीनों पहले उस स्कूल का चयन करते हैं जिसका रिनोवेशन किया जाना है, फिर ऑथोरिटी बात करते हैं, स्थानीय लोगों और सुपरवाईजरों को इस काम से जोड़ते हैं और फिर स्थानीय रोटरी क्लब को इन्वाल्व कर उनकी मदद से काम पूरा करते हैं। इस प्रोग्राम की खासियत ये है कि कोई भी स्कूल का नाम रिनोवेशन के लिए सुझा सकता है। शर्त केवल यही है कि उस स्कूल से गरीब बच्चों को फायदा होना चाहिए और उस स्कूल के टीचर्स में बच्चों को बेहतर पढ़ाने और बेहतर शैक्षिणक माहौल देने की ललक होनी चाहिए। बहरहाल आने वाले समय में इनका लक्ष्य साल में पच्चीस स्कूलों के रिनोवेशन के सभी हिस्से में काम करने का है।

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