एक चीनी कहावत है-अंधेरे को कोसने से बेहतर है मोमबत्ती जलाओ। यानी कोसने से बेहतर करना है। हमेशा सरकार और सिस्टम को कोसने से कुछ नहीं होने वाला, करप्नश का रोना रोने से भी कोई फायदा नहीं। अगर कुछ हो सकता है तो हमारे लिए बनायी गई योजनाओं, उसके लिए निर्धारित की गई रकम और उसे अपने विकास पर खर्च करने के तौर-तरीके जानने और उसके लिए माहौल बनाने से। कम से कम कर्नाटक के बेलगांव जिले के सिरागुप्पी गांव की पंचायत और वहां के लोग तो यही कहते हैं। हाल ही में इस गांव को न सिर्फ केन्द्र सरकार से माॅडल गांव अवार्ड मिला है, बल्कि इसने गुगल अवार्ड भी हासिल किया है। ये अवार्ड सरकार की सभी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने और सभी बुनियादी सुविधाओं का लक्ष्य हासिल कर लेने वाले गांव को दिया जाता है।
दरअसल, विकास की सैकड़ों योजनाएं सरकार के पास है, हर साल बजट में इन योजनाओं के लिए रकम भी एलोकेट होती है पर ये भी सच है कि ये पैसा उन तक नहीं पहुंचता जिनके लिए ये योजनाएं बनती हैं, या फिर पहंुचता भी है तो नाममात्र को। यानी इन्हें इंप्लीमेंट करने वाला सिस्टम भ्रश्ट है। जबकि देश की 72 फीसदी आबादी आज भी लगभग 6 लाख गांवों में रहती है। लेकिन फिर भी बुनियादी सुविधाओं तक उनकी पहंुच शहरों में रहने वाली आबादी जैसी नहीं है। लेकिन फिर भी विकास की भूख हो, जमाने के साथ कदम मिला कर चलने की ललक हो, साथ ही अपनी जड़ अपनी मिट्टी से भी उतना ही प्यार हो, तो सब संभव है। अब सिरागुप्पी गांव की ही बात करें तो, ये उसी कर्नाटक का हिस्सा है जिसे फिलहाल देश के भ्रष्टतम राज्यों में से एक समझा जाता है। लेकिन इसे भ्रष्ट कहने वाली पार्टी, जिसकी केन्द्र में सरकार है उसी ने इस गांव को सम्मानित भी किया है। यही नहीं कर्नाटक को पंचायती व्यवस्था को बेहतर ढंग से लागू करने वाला दूसरा राज्य होने का सम्मान भी दिया गया, जबकि पिछले साल कर्नाटक पहले स्थान पर था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्ट तंत्र होने के बावजूद भी विकास के प्रति लोगों की चाहत को यहां नजरअंदाज करना इतना आसान नहीं। तभी तो स्वच्छता, पीने के पानी की सप्लाई, प्राइमरी एजुकेशन, रोड, महिलाओं और समाज के कमजोर तबके में साक्षरता का अनुपात जैसे मानकों पर यह गांव देश भर में खरा उतर पाया और माॅडल गांव होने का रूतबा हासिल कर पाया। और यहीं से इस गांव की सक्सेस स्टोरी भी देश के बाकी गांवों के लिए भी एक उदाहरण बन जाती है। क्योंकि विकास के लिए गांव की पंचायत ही नहीं बल्कि पूरे गांव ने एक होकर काम किया, पंचायत में कोई किसी दल का नहीं था और न गांव में कोई किसी समूह का। बस सबकी लाईन एक ही रही-सिरागुप्पी के तरक्की की लाईन। इस गांव की पंचायत और लोगों ने साबित किया कि सब अगर मिलकर एक लक्ष्य के लिए काम करें तो बदलाव जरूर ला सकते हैं। पिछले पांच साल में इस गांव ने 8 करोड़ अपने विकास पर खर्च किए।
सच तो ये है कि माॅडल गांव जैसा कोई अवार्ड होना ही नहीं चाहिए था, विकास के जिन मानकों पर ये अवार्ड दिया जाता है, हर गांव का ये बुनियादी हक है, पर ऐसा है नहीं। आज भी देष के लाखों गांव बिजली, सड़क, स्कुल, अस्पताल, और पीने के पानी की सप्लाई जैसे बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। ऐसे में किसी गांव में घर-घर में नल होना, प््रााॅपर अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम होना,घर-घर में टाॅयलेट होना, कचरे का सिस्टेमेटिक ढंग से निपटान होना और अच्छी सड़के होना, निष्चिततौर पर देष के दूसरे गांवों के लिए सपने सरीखा ही है। लेकिन ये सब तभी संभव हो पाया जब पंचायत ने सरकार की सारी योजनाओं को पूरी पारदर्षिता के साथ लागू किया। और लोगों ने भी योजनाओं का किसी भी रूप में दुरूपयोग नहीं किया। सरकारी फंड के साथ-साथ इस गांव ने अपने एमपी और एमएलए फंड का भी बखूबी इस्तेमाल किया। फिर भी पैसा कम पड़ा तो अपने स्रोत से संसाधन जमा कर विकास के अपने लक्ष्यों को हासिल किया। यही नहीं केन्द्र सरकार की मनरेगा जैसी योजना को इस गांव ने 100 प््रातिषत क्षमता के साथ लागू किया है। गांव के प्राईमरी हेल्थ सेंटर में आपको एम्बूलेंस भी मिल जाएगा। 2290 घरों वाले इस गांव के 1335 घर में नल हैं। गांव की साक्षरता दर 96 फीसदी है। दस हजार की आबादी वाले इस गांव में 70 सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं। पंचायत में प्री युनिवर्सिटी काॅलेज, तीन हाई स्कूल, छः प््रााईमरी स्कूल और नौ आंगनबाड़ी सेंटर हैं। यहां बैंकों की षाखाएं भी हैं और पंचायत पूरी तरह से कंप्यूटराईज्ड है। साथ ही पानी पर चार्ज से पंचायत ने 7 लाख रूपए अर्जित किए।
षिरागुप्पी गांव ने अपनी सूरत, अपने लिए बनायी गई योजनाओं और उनके लिए आवंटित रकम का इस्तेमाल करके बदली है, देष के बाकी गांवों को यही याद रखने की जरूरत है।
दरअसल, विकास की सैकड़ों योजनाएं सरकार के पास है, हर साल बजट में इन योजनाओं के लिए रकम भी एलोकेट होती है पर ये भी सच है कि ये पैसा उन तक नहीं पहुंचता जिनके लिए ये योजनाएं बनती हैं, या फिर पहंुचता भी है तो नाममात्र को। यानी इन्हें इंप्लीमेंट करने वाला सिस्टम भ्रश्ट है। जबकि देश की 72 फीसदी आबादी आज भी लगभग 6 लाख गांवों में रहती है। लेकिन फिर भी बुनियादी सुविधाओं तक उनकी पहंुच शहरों में रहने वाली आबादी जैसी नहीं है। लेकिन फिर भी विकास की भूख हो, जमाने के साथ कदम मिला कर चलने की ललक हो, साथ ही अपनी जड़ अपनी मिट्टी से भी उतना ही प्यार हो, तो सब संभव है। अब सिरागुप्पी गांव की ही बात करें तो, ये उसी कर्नाटक का हिस्सा है जिसे फिलहाल देश के भ्रष्टतम राज्यों में से एक समझा जाता है। लेकिन इसे भ्रष्ट कहने वाली पार्टी, जिसकी केन्द्र में सरकार है उसी ने इस गांव को सम्मानित भी किया है। यही नहीं कर्नाटक को पंचायती व्यवस्था को बेहतर ढंग से लागू करने वाला दूसरा राज्य होने का सम्मान भी दिया गया, जबकि पिछले साल कर्नाटक पहले स्थान पर था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्ट तंत्र होने के बावजूद भी विकास के प्रति लोगों की चाहत को यहां नजरअंदाज करना इतना आसान नहीं। तभी तो स्वच्छता, पीने के पानी की सप्लाई, प्राइमरी एजुकेशन, रोड, महिलाओं और समाज के कमजोर तबके में साक्षरता का अनुपात जैसे मानकों पर यह गांव देश भर में खरा उतर पाया और माॅडल गांव होने का रूतबा हासिल कर पाया। और यहीं से इस गांव की सक्सेस स्टोरी भी देश के बाकी गांवों के लिए भी एक उदाहरण बन जाती है। क्योंकि विकास के लिए गांव की पंचायत ही नहीं बल्कि पूरे गांव ने एक होकर काम किया, पंचायत में कोई किसी दल का नहीं था और न गांव में कोई किसी समूह का। बस सबकी लाईन एक ही रही-सिरागुप्पी के तरक्की की लाईन। इस गांव की पंचायत और लोगों ने साबित किया कि सब अगर मिलकर एक लक्ष्य के लिए काम करें तो बदलाव जरूर ला सकते हैं। पिछले पांच साल में इस गांव ने 8 करोड़ अपने विकास पर खर्च किए।
सच तो ये है कि माॅडल गांव जैसा कोई अवार्ड होना ही नहीं चाहिए था, विकास के जिन मानकों पर ये अवार्ड दिया जाता है, हर गांव का ये बुनियादी हक है, पर ऐसा है नहीं। आज भी देष के लाखों गांव बिजली, सड़क, स्कुल, अस्पताल, और पीने के पानी की सप्लाई जैसे बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। ऐसे में किसी गांव में घर-घर में नल होना, प््रााॅपर अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम होना,घर-घर में टाॅयलेट होना, कचरे का सिस्टेमेटिक ढंग से निपटान होना और अच्छी सड़के होना, निष्चिततौर पर देष के दूसरे गांवों के लिए सपने सरीखा ही है। लेकिन ये सब तभी संभव हो पाया जब पंचायत ने सरकार की सारी योजनाओं को पूरी पारदर्षिता के साथ लागू किया। और लोगों ने भी योजनाओं का किसी भी रूप में दुरूपयोग नहीं किया। सरकारी फंड के साथ-साथ इस गांव ने अपने एमपी और एमएलए फंड का भी बखूबी इस्तेमाल किया। फिर भी पैसा कम पड़ा तो अपने स्रोत से संसाधन जमा कर विकास के अपने लक्ष्यों को हासिल किया। यही नहीं केन्द्र सरकार की मनरेगा जैसी योजना को इस गांव ने 100 प््रातिषत क्षमता के साथ लागू किया है। गांव के प्राईमरी हेल्थ सेंटर में आपको एम्बूलेंस भी मिल जाएगा। 2290 घरों वाले इस गांव के 1335 घर में नल हैं। गांव की साक्षरता दर 96 फीसदी है। दस हजार की आबादी वाले इस गांव में 70 सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं। पंचायत में प्री युनिवर्सिटी काॅलेज, तीन हाई स्कूल, छः प््रााईमरी स्कूल और नौ आंगनबाड़ी सेंटर हैं। यहां बैंकों की षाखाएं भी हैं और पंचायत पूरी तरह से कंप्यूटराईज्ड है। साथ ही पानी पर चार्ज से पंचायत ने 7 लाख रूपए अर्जित किए।
षिरागुप्पी गांव ने अपनी सूरत, अपने लिए बनायी गई योजनाओं और उनके लिए आवंटित रकम का इस्तेमाल करके बदली है, देष के बाकी गांवों को यही याद रखने की जरूरत है।
ऐसे ही आशाओं के दिये जलाने होंगे।
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