शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

सिर्फ पढ़ना काफी नहीं

Inext में प्रकाशित लेख
राइट टू एजूकेशन का जश्न मन रहा है इसके प्रैक्टिकल एप्लीकेशन में क्या.क्या दिक्कतें आने वाली हैं  इस पर भी चर्चा हो रही है । इन सबके बीच क्वालिटी एजूकेशन का सवाल भी तो है। मौजूदा समय में हमारे देश में एजूकेशन में क्वांटिटेटिव सुधार तो आया है लेकिन क्वालिटी में नहीं। सरकार की कोशिशों के कारण अगर प्राइमरी एजूकेशन सभी के लिए सुनिश्चित हो भी जाए तो भी भविष्य में हायर एजूकेशन पर इससे बहुत फर्क पड़ेगा इसमें शक है। इस संदर्भ में लगातार पहले ही काफी चिंताएं जताई जा रही हैं लेकिन ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि मौजूदा समय में देश में हायर एजूकेशन स्टैंडर्ड भी काफी चिंताजनक हैं।   हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार सैम पित्रोदा ने कहा कि देश की 90 प्रतिशत यूनिवर्सिटी मानक से लो स्टैंडर्ड एजूकेशन मुहैया करा रही है, एक कान्फ्रेंस में सैम पित्रोदा ने अपनी चिंताएं जाहिर करते हुए कहा कि 90 प्रतिशत यूनिवर्सिटी मानक से लो स्टैंडर्ड एजूकेशन मुहैया करा रही हैं आैर इनकी क्वालिटी ऑफ एजूकेशन अप.टू.द मार्क नहीं है, इसे तुरंत सुधारे जाने की जरूरत है।   चिंता यह भी थी कि जितनी यूनिवर्सिटीज या कॉलेजेस हायर एजूकेशन के लिए हैं  वे काफी नहीं हैं, शायद इसलिए सरकार ने 14 नई यूनिवर्सिटी ऑफ इनोवेशन और 400 नए कॉलेज खोलने का फैसला लिया है, लेकिन कॉलेज खोले जाना भर काफी नहीं है।  असल सवाल यह है कि जो एजूकेशन अवेलेबल कराई जा रही है, वो कितनी कारगर है? शिक्षा के इस मसले के दो बिल्कुल अलग.अलग सेक्शन हैं, एक जिसकी चिंता में हर व्यक्ति की जद में शिक्षा का न पहुंचना है जिससे संबंधित राइट टू एजूकेशन हाल ही में आया ही है, दूसरा सेक्शन है कि क्वालिटी एजूकेशन, क्वालिटी एजूकेशन किसी भी देश की बेसिक रिक्वायरमेंट तो है ही, इसी पर देश की तरक्की बेस करती है।  देश में हर साल बड़ी संख्या में बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है यह संख्या अपने आप में काफी कुछ कहती है हाथों में डिग्रियां थामे बेरोजगारों की संख्या बढ़ाने वाले हाथ कितने इक्विप्ड हैं उनकी शिक्षा कितनी कारगर है खुद उनके लिए और देश की प्रोग्रेस के लिए उनके हाथ में शिक्षा का हथियार तो है लेकिन अगर वो मोथरा है तो किस काम का? ये वो सवाल हैं जिन पर काम होना जरूरी है। एक बढि़या कॉलेज से पढ़.लिखकर निकला युवा किसी भी सूरत में बेरोजगार नहीं हो सकता, नौकरी भर उसका लक्ष्य होता भी नहीं वो नये रास्ते खोजता है और कुछ न कुछ बेहतर करने की फिराक में रहता है एक बार किसी ने कहा था कि एक आईआईएम पास आउट अगर सब्जी का ठेला भी लगायेगा तो उसमें भी कुछ न कुछ लैंडमार्क सक्सेस जरूर अचीव करेगा।  एजूकेशन का व्यापक अर्थ समझना है, एजूकेशन सिर्फ डिग्री हासिल करना नहीं काले अक्षरों को जानना भर नहीं है, जीवन के जटिल अर्थो को सहज रूप में समझना है एक वेल एजूकेटेड व्यक्ति कभी भी बेकार नहीं रह सकता  वह कुछ न कुछ करके अपने लिए रास्ते निकाल ही लेगा।
  किसी देश के भविष्य की चाभी बेहतर एजूकेशन में छिपी होती है। भारत में बंगलूरू इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जो आज से 20.25 साल पहले केवल अपने कॉलेजों के लिए प्रसिद्ध था।  लेकिन बाद में तकनीकी शिक्षा से लैस यही युवा यहां.वहां बड़ा वर्कफोर्स बन गए और दुनिया में भारत को बंगलूरू के नाम से एक अलग पहचान दिलाई। पूरे देश को बंगलूरू बनना है ,जो  भी पढ़ा.पढ़ाया जा रहा है उसकी क्वालिटी पर ध्यान रखे जाने की जरूरत है सरकार की जिम्मेदारी तो है ही लेकिन एक इंडीविजुअल के तौर पर टीचर्स और स्टूडेंट्स का इनीसिएशन भी इंपॉर्टेट है  इसे इग्नोर नहीं किया जा सकता।

6 टिप्‍पणियां:

  1. SAHI HE DIDI JI


    bahut khub

    shkhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  2. "किसी देश के भविष्य की चाभी बेहतर एजूकेशन में छिपी होती है। सरकार की कोशिशों के कारण अगर प्राइमरी एजूकेशन सभी के लिए सुनिश्चित हो भी जाए तो भी भविष्य में हायर एजूकेशन पर इससे बहुत फर्क पड़ेगा इसमें शक है।"

    ji bilkul sahi baat!

    kunwar ji,

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  3. proper implementation bahut zaruri hai...kahin baki yojnaon ki tarah ye bhi bas yojna hi na reh jaye...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  4. आपकी बातों से सहमत हैं. चलिए राइट टू एजुकेशन के जरिए सरकार प्राइमरी एजुकेशन को सुधारने की कोशिश तो कर रही है लेकिन हायर एजुकेशन के बारे में कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। मरने के दिन तक इंसान कुछ न कुछ सीखता रहता है। अब सरकार से तो यही सवाल है कि वो देश के नागरिकों को क्या सीखा रही है।

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  5. वैसे कहना तो आपका सही है, असल में भारत जैसे देश में शिक्षित होने का मतलब अपना नाम लिख लेना ही होता है... सरकार साक्षरता अभियान चला रही है... मेरा भारत महान है भाई...

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