गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

कार्बन मुक्त भविष्य की आेर


( पबिलक एजेंडा में प्रकाशित लेख )




बंगलूरू का टीजेड हाउसिंग काॅम्पलेक्स यूं तो किसी भी आम आलीशान, लग्जरी हाउसिंग काॅम्पलेक्स की ही तरह दिखता है, अपेक्षाकृत थोड़ी ज्यादा हरियाली के साथ। लेकिन ऐसा है नहीं, दरअसल, टीजेड यानी जीरो एनर्जी डेवलपमेंट पूरी तरह से कार्बन मुक्त हाउसिंग काॅम्पलेक्स है। जो उर्जा और पानी के अलावा सीवरेज प्रणाली सभी के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर है। 95 परिवारों का यह आशियाना अपनी जरूरत का पानी वर्षा जल संग्रह करके हासिल करता है। सौर उर्जा का इस्तेमाल करता है और जैविक ईंधन व कचड़े से अपने लिए बिजली बनाता है। एनर्जी एफिशियेंट उपकरणों का प्रयोग करता है और दिन में उपलब्ध अधिकतम प्राकृतिक प्रकाश का दोहन करता है।
बीसीआईएल, यानी बायोडायवरसिटी कन्जरवेशन इंडिया लिमिटेड ने इस आवासीय परिसर का निर्माण किया है। व्हाईटफील्ड स्थित यह आवासीय परिसर पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल और खुबसूरत हैं। उल्लेखनीय बात ये है कि पर्यावरण संरक्षण के मानकों पर पूरी तरह से खरा उतरने के बावजूद आधुनिक सुख-सुविधाओं में यहां कोई कटौती नहीं की गई है। केन्द्रीकृत सुरक्षा प्रणाली, लांड्री, कान्फ्रेस हाॅल, स्विमिंग पुल, रेस्तरां, जिम जैसी सभी आधुनिक सुविधाएं हैं यहां। पांच एकड़ में फैले टीजेड की परिकल्पना बीसीआईएल के प्रमुख चंद्रशेख्ार हरिहरन की है। उनका लक्ष्य एक ऐसा शहरी रिहाईश विकल्प मुहैया कराना था जो पानी, उर्जा और कचड़ा प्रबंधन सभी मामलों में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो। अतः टीजेड में निर्माण से जुड़े सभी पक्षों में प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण और पर्यावरण पर उसके नकारात्मक प्रभाव कम से कम हों इसका ध्यान रखा गया है। यहां के घरों में आप पर्यावरण के अनुकूल जीरो इलेक्ट्रीसिटी इन बिल्ट रेफ्रिजरेटर पाएंगे, यानी सभी घरों के लिए एक मोटर और कंप्रेषर से संचालित होने वाला फ्रिज। साथ ही सौ प्रतिषत ताजी हवा पर आधारित वातानुकूलन प्रणाली है जो रेफ्रीजेंट के तौर पर पानी का इस्तेमाल करती है। दरअसल, टीजेड इस मायने में भी अन्य आवासीय परिसरों से अलग है कि यह अपने पूरे जीवन चक्र यानी निर्माण, जीवन काल और विध्वंस सभी चरणों में कार्बन उत्सर्जन कम से कम करेगा। इसलिए यह देशा की पहली ऐसी अवासीय परियोजना है जिसे क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म इनीषिएटिव के तहत कार्बन क्रेडिट हासिल है।
अर्थषास्त्री से पर्यावरण व्यवसायी बने चंद्रशेखर हरिहरन 1989 से ग्रीन बिल्डिंग की अवधारणा से जुड़े हुए हैं और दीर्घकालीन विकास के अर्थशास्त्र में यकीन रखते हैं। 11-12 साल उन्हें भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने और काम करने का मौका मिला। वे अन्ना हजारे के साथ भी रहे और उन्हें रालेगांव सिद्धि के माॅडल को बहुत करीब से देखने और समझने का मौका मिला। इन अनुभवों ने चंद्रशेखर को शहरी विकास खासतौर पर भवन-निर्माण के क्षेत्र में कुछ नया करने की राह दिखायी। उनका काम पूरी तरह से पेशेवर और मांग यानी बाजार पर आधारित है। अपने ग्रीन बिल्डिंग का पहला माॅडल उन्होंने 1995 में पेश किया और 2003 से टीजेड के निर्माण में लगे। संसाधनों पर शहरी लोगों और उनकी जीवशैली से पड़ने वाले बोझ को कम करना उनका मकसद है। मुंबई में एक सम्मेलन में किसी ने उन्हें बताया भारत के शहरों में बसने वाली 40 फीसदी आबादी 75 फीसदी संसाधनों का इस्तेमाल करती है और सकल घरेलू उत्पादन में 60 प्रतिशत का योगदान करती है। इस जानकारी ने चंद्रशेखर की सोच को काफी प्रभावित किया। नतीजा आज टीजेड जैसे हाउसिंग काॅत्पलेक्स के रूप में सामने है जो एक बैकल्पिक शहरी आवासीय जीवन शैली मुहैया कराता है, वो भी मौजूदा जीवन  शैली से समझौता किए बगैर, पर्यावरण संरक्षण के सभी मानकों को पूरा करते हुए।


फिलहाल 30 लाख से डेढ़ दो करोड़ की कीमत वाले इन फ्लैट को हरिहरन कम लागत में भी लेकर आना चाहते हैं। और 7 से 10 लाख में भी ऐसे मकान बनाना चाहते हैं। टीजेड बीसीआईएल की पांचवी परियोजना है। हरिहरन कहते हैं और भी कंपनियां इस क्षेत्र में गंभीरता से काम कर रही हैं क्योंकि भविश्य इसी का है। बंगलूरू के अलावा उनका मैसूर, कुर्ग, गोवा और लोनावाला में भी इको-टुरिज्म के तहत ग्रीन बिल्डिंग परियोजनाओं पर काम चल रहा है। टीजेड से पहले बंगलूरू में बीसीआईएल की चार और परियोजनाओं में भी संरक्षण के प्राथमिक सिद्धांतों का ध्यान रखा गया था। लेकिन टीजेड भवन निर्माण को बिल्कुल नए सिरे से परिभाषित करता है। यह उपभोग को उत्पादन और पुर्नउत्पादन के साथ जोड़ता है और वो भी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के साथ। मसलन इंटों की जगह पर फ्लाई एश ब्लाॅक्स का प्रयेाग, प्लास्टर के लिए सीमेंट के बजाए मिट्टी और फर्श के लिए कडप्पा और कोटा पत्थर। दीवारों को पेंट फ्री सामग्री से बनाया गया है और प्राकृतिक तापमान नियंत्रण तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। साथ ही वैसी ही लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया है जिनकी प्लांनटेशन होती है। टीजेड की उपलब्ध्यिां गौर करने लायक हैं मसलन, यहां निगम का पानी नहीं लिया जाता, सीवर लाईन की यहां जरूरत नहीं है क्योंकि पानी को रीसाईकल कर बागवानी में प्रयोग किया जाता है और फिर इससे भूजल को रिचार्ज किया जाता है। रेफ्रिजरेषन और वातानूकुलन में सीएफसी और एचसीएफसी का उत्सर्जन नहीं होता है। इस तरह कुल 20,000 टन कार्बन उत्सर्जन रोका जाता है।
हरिहरन बताते हैं भारत ग्रीन बिल्डिंग अभियान के अग्रणी देशों में से एक है। फिलहाल भारत में 321 मिलीयन वर्ग फुट प्रमाणित ग्रीन बिल्डिंग है जो अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा है। लेकिन गुणवत्ता के मामले में भारत अमेरिका से आगे है। 2012 तक सीआईआई इंडिया इसे 1 बिलीयन वर्गफुट तक करने का लक्ष्य रखता है।
आवासीय भवनों के मामले में भी भारत का स्थान दूसरा है। हरिहरन कहते हैं संभवतः आने वाले समय में सभी सरकारी भवनों का ग्रीन बिल्डिंग होना अनिवार्य हो जाएगा साथ ही उर्जा के संदर्भ में उनका पांच नहीं ंतो तीन स्टार होना अनिवार्य हो जाएगा। उनके मुताबिक इससे बहुत फर्क पड़ेगा क्योंकि सरकार ने 580 सेज को मंजूरी दी है जिनमें लगभग 400 पर काम षुरू होने वाला है। 1,200 विशवविद्यालय बनने हैं ऐसे में सरकार की ओर से हरित दिशानिर्देष होना बहुत जरूरी है। दरअसल, भवन निर्माण से जुड़े सभी पक्षों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है क्योंकि अभी भी मात्रः 2 प्रतिशत निर्माण ही वास्तुकारों के दिशा-निर्देश में होता है।


चंद्रशेखर बीसीआईएल अल्टरनेटिव टेक फाउंडेशन के भी संस्थापक हैं। यह संस्था उर्जा और इंटेलीजेंट बिल्डिंग प्रबंधन में प्रयोग करती है। और ग्रीन आईडिया लैब की स्थापना में भी इनकी अहम् भूमिका रही। यह संस्था षहरी परिप्रेक्ष्य में ग्रीन बिल्डिंग के लिए जरूरी फ्रेमवर्क पर परामर्श श्मुहैया कराती है। पिछले दो दषक में उन्होंने कई सफल दीर्घकालीन योजनाओं को लांच किया है। 2006 में एडीबी वाटर चैंपियन अवार्ड हासिल करने वाले 63देषों के नौ एषियन में से वे पहले भारतीय हैं।
बंगलूरू में चित्रा विशनाथ जैसे वास्तुकार भी हैं जो इको-फ्रेडली जैसे शब्दों के चलन में आने से काफी पहले से इसे खुद के जीवन शैली का हिस्सा बना चुकी हैं। चित्रा के घर में आपको न ए.सी, पंखे की जरूरत होगी और न ही दिन के समय कृत्रिम रोशनी  की। उर्जा और जल संरक्षण को वो काफी पहले ही अपने जीवन-शैली का हिस्सा बना चुकी हैं। बंगलूरू में ही अब तक 500 से ज्यादा इको-फे्रन्डली भवन डिजायन कर चुकी हैं वों। चित्रा कहती हैं मांग बढ़ रही है इसलिए मेरे जैसे इको-फ्रेन्डली वास्तुकारों के लिए काम बढ़ रहा है। भविश्य ऐसे ही वास्तुकारों का है इसलिए नए वास्तुकार भी  इसी राह पर चल रहे हैं। 1990 से भवन-निर्माण डिजायन से जुड़ी चित्रा कहती हैं-हमने कुछ नया नहीं किया बल्कि स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल कर अपने जीने की बुनियादी सुविधाएं जुटाने, बनाने के हमारे पारंपरिक तरीकों को ही आधुनिक वास्तुकला में समायोजित किया है। बंगलूरू के अलावा चित्रा ने दिल्ली, मध्य-प्रदेष, हैदराबाद, मुंबई और कोलकाता के भी कुछ भवनों को डिजायन किया है और ये सभी इमारतें पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल हैं। चित्रा कहती हैं, ऐसी इमारतों में आकर सात्विकता का अनुभव होता है, जैसे प्रकृति एकदम आपके साथ है।

अपने घर के बारे में बताती हुई वो कहती हैं मेरा घर 15 साल पुराना है और 18 सौ वर्ग-फुट का है लेकिन अभी तक मुझे इसके रखरखाव पर मात्र 17 हजार रूपए खर्च करने पड़े है और मेरा बिजली का बिल सभी उपकरणों के इस्तेमाल के बावजूद 400 रूपए तक ही आता है इसकी वजह घर का प्राकृतिक प्रकाष पर ज्यादा निर्भर रहना और तापमान के लिए अनुकूलित तकनीक और सामग्री से बना होना है। चित्रा अपने भवनों में पेंट का इस्तेमाल नहीं करती हैं इसके बजाए प्लास्टर में मिट्टी का प्रयोग करती हैं और ईंट की शैली वाली दीवार बनाती हैं, जिन्हें पेंट की जरूरत नहीं पड़ती है। चित्रा कहती हैं-वैसे भी भारत में आज भी वही लेड वाले पेंट बिक रहे हैं जिन्हें 36 साल पहले यूरोप में बैन कर दिया गया था और 17 साल पहले अमेरिका में। इसी साल से भारत में लेड-मुक्त पेंट बिकने षुरू हुए हैं लेकिन लेड वाले पेंट पर रोक नहीं लगी है। चित्रा के पति विष्वनाथ जल संरक्षण से गहरे जुड़े हैं वे  रेनवाटर क्लब के मार्फत  वर्षा जल संरक्षन को आधुनिक निर्माण से जोड़ रहे हैं। चित्रा के द्वारा डिजायन की गई सभी इमारतों में वर्षा जल संरक्षण का विषेश प्रावधान होता है।
पिछले बारह साल से बंगलूरू में रह रहे फ्रीलांस पेंटर और म्यूरल आर्टिस्ट संजय सिंह के घर की वास्तुकार चित्रा विष्वनाथ ही हैं। संजय कहते हैं बंगलूरू में पर्यावरण अनुकूल इमारतें लोकप्रिय हो रही हैं और जगहों के मुकाबले यहां इकोफ्रेन्डली इमारतों की संख्या बढ़ रही हैं। वो खुद अपने अनुभव बताते हुए कहते हैं-वर्षा जल संरक्षण के कारण मेरा घर पानी के मामले में लगभग आत्मनिर्भर है। मेरे घर में पेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है और प्राकृतिक प्रकाश व हवा के अधिकतम इस्तेमाल का प्रावधान है। संजय सिंह के घर में भी ए.सी छोड़ें बिजली के पंखें तक नहीं हैं। संजय बताते हैं-दरअसल इको-फ्रेन्डली घर और सामान्य घर बनाने में लगभग खर्च बराबर ही आता है लेकिन लंबी अवधि में यह किफायती साबित होता है क्योंकि इसके रखरखाव का खर्च बच जाता है साथ ही पानी और बिजली पर होने वाले अतिरिक्त खर्च में भी बचत होती है।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आप के ब्लॉग को की चर्चा तेताला पर की है देखे
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

    जवाब देंहटाएं
  2. आप के ब्लॉग को की चर्चा तेताला पर की है देखे
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084
    http://tetalaa.blogspot.com/2010/02/blog-post_7641.html

    जवाब देंहटाएं
  3. दो तीन पोस्ट में ही इतनी गहरी पोस्ट आप ने रख दी है सब तो डर कर भाग ही गए होगे वैसे बहुत ही सराहनीय प्रयाश है उन लोगो का और आप का भी जो आप पोस्ट लिख कर प्रचारित कर रही है
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

    जवाब देंहटाएं
  4. आप की हिन्दी दोष मुक्त है -समस्या फांट की लगती है -आप सीधे यूनिकोड में ही क्यों नही लिखतीं ?

    जवाब देंहटाएं
  5. देश के हर भाग मे ऐसे ही घरों की जरुरत है...

    जवाब देंहटाएं
  6. itna acha likha hai aap tarif ke kabil hai. isliye bhi yeh kishi vishes se nahi juda hai aap sabke bare mai soche hai baht acha

    जवाब देंहटाएं