(बंगलूरू से प्रकाशित होने वाली हिन्दी पत्रिका भारतीय ओपीनियन मे प्रकाशित)
पानी की समस्या आज दुनियां की सबसे बड़ी समस्या है। ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरणीय असन्तुलन, नदियों और उपलब्ध सभी जलस्रोतों का असन्तुलित दोहन, भूमिगत जल स्तर का दिनों दिन नीचे जाना, ये सभी मिलकर भयावह दृश्य पेश कर रहे हैं और संकेत कर रहे हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। दरअसल जल संकट अब करो या मरो की स्थिति में आ चुका है। खासतौर पर शहरों और महानगरों में आबादी में लगातार इजाफा के कारण जल आपूर्ति एक विकट समस्या बनती जा रही है। ऐसे में पानी को सहेज कर रखना और पानी का किफायती इस्तेमाल दोनों बेहद जरूरी हो गया है। जल संरक्षण की दिशा बहुत से लोग उल्लेखनीय काम भी कर रहे हैं। कुछ लोग बड़े स्तर पर तो कुछ व्यक्तिगत स्तर पर। पिछले 12 साल से बंगलूरू में रह रहे फ्रीलांस पेंटर और म्यूरल आर्टिस्ट संजय सिंह पानी और पर्यावरण के प्रति अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं और अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहे हैं।
मूलत: बिहार के रहने वाले संजय सिंह ने विश्वभारती से पेिन्टंग में ग्रेजुएशन म्यूरल या भित्तिचित्र में मास्टर की डिग्री ली है। विश्वभारती में ही इनका परिचय कर्नाटक की प्रतिभा से हुआ जो फिलहाल बंगलूरू चित्रकला परिषद में फैकल्टी हैं और इनकी जीवन संगिनी भी। कलाकार होने के कारण दोनों अपने आसपास और पर्यावरण के प्रति काफी संवेदनशील रहे हैं। इसलिए बंगलूरू में जब इन्होंने अपना घर बनाया तो वर्षाजल संरक्षण के साथ-साथ घर को यथासम्भव इकोफ्रेडंली बनाने की कोशिश की। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि संजय सिंह के घर में पूरी तरह से प्राकृतिक प्रकाश के इस्तेमाल की व्यवस्था है और प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग किया गया है। बंगलूरू में पानी की समस्या काफी विकट रही है जो दिनों-दिन और गहराती जा रही है। यहां जल आपूर्ति कावेरी नदी के पानी से की जाती है, जिसे 100 किलोमीटर से लाया जाता है। संजय जिस इलाके में रहते हैं वहां अभी सरकारी सप्लाई का पानी नहीं पहुंचता है। लगभग 25 रिहाईशी घर वाले इस इलाके में पानी की आपूर्ति कॉमन बोरवेल से की जाती है। संजय बताते हैं वर्षाजल संरक्षण प्रणाली को अपना कर पानी के मामले में हमने खुद को काफी हद तक आत्मनिर्भर बना लिया है। संजय के मुताबिक इस प्रणाली को लगाने के बाद लगभग 4-5 महीने उन्हें किसी अन्य स्रोत से पानी की जरूरत नहीं होती है। साधारण बारिश में भी 7 मिनट की अवधि में उनके पास लगभग 500 लीटर पानी जमा हो जाता है। लेकिन संजय ये भी बताना नहीं भूलते कि वे पानी का इस्तेमाल भी किफायत से करते हैं। दरअसल, आपूर्ति और खर्च के बीच सन्तुलन बेहद जरूरी है और पानी के मामले में तो आपको एक कदम आगे बढ़कर आने वाली पीढ़ियों को सोचकर चलना होगा। इसलिए वे किफायत पर बहुत जोर देते हैं।
आखिर वर्षाजल संरक्षण प्रणाली है क्या और इसकी लागत क्या है?
पानी की समस्या आज दुनियां की सबसे बड़ी समस्या है। ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरणीय असन्तुलन, नदियों और उपलब्ध सभी जलस्रोतों का असन्तुलित दोहन, भूमिगत जल स्तर का दिनों दिन नीचे जाना, ये सभी मिलकर भयावह दृश्य पेश कर रहे हैं और संकेत कर रहे हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। दरअसल जल संकट अब करो या मरो की स्थिति में आ चुका है। खासतौर पर शहरों और महानगरों में आबादी में लगातार इजाफा के कारण जल आपूर्ति एक विकट समस्या बनती जा रही है। ऐसे में पानी को सहेज कर रखना और पानी का किफायती इस्तेमाल दोनों बेहद जरूरी हो गया है। जल संरक्षण की दिशा बहुत से लोग उल्लेखनीय काम भी कर रहे हैं। कुछ लोग बड़े स्तर पर तो कुछ व्यक्तिगत स्तर पर। पिछले 12 साल से बंगलूरू में रह रहे फ्रीलांस पेंटर और म्यूरल आर्टिस्ट संजय सिंह पानी और पर्यावरण के प्रति अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं और अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहे हैं।
मूलत: बिहार के रहने वाले संजय सिंह ने विश्वभारती से पेिन्टंग में ग्रेजुएशन म्यूरल या भित्तिचित्र में मास्टर की डिग्री ली है। विश्वभारती में ही इनका परिचय कर्नाटक की प्रतिभा से हुआ जो फिलहाल बंगलूरू चित्रकला परिषद में फैकल्टी हैं और इनकी जीवन संगिनी भी। कलाकार होने के कारण दोनों अपने आसपास और पर्यावरण के प्रति काफी संवेदनशील रहे हैं। इसलिए बंगलूरू में जब इन्होंने अपना घर बनाया तो वर्षाजल संरक्षण के साथ-साथ घर को यथासम्भव इकोफ्रेडंली बनाने की कोशिश की। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि संजय सिंह के घर में पूरी तरह से प्राकृतिक प्रकाश के इस्तेमाल की व्यवस्था है और प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग किया गया है। बंगलूरू में पानी की समस्या काफी विकट रही है जो दिनों-दिन और गहराती जा रही है। यहां जल आपूर्ति कावेरी नदी के पानी से की जाती है, जिसे 100 किलोमीटर से लाया जाता है। संजय जिस इलाके में रहते हैं वहां अभी सरकारी सप्लाई का पानी नहीं पहुंचता है। लगभग 25 रिहाईशी घर वाले इस इलाके में पानी की आपूर्ति कॉमन बोरवेल से की जाती है। संजय बताते हैं वर्षाजल संरक्षण प्रणाली को अपना कर पानी के मामले में हमने खुद को काफी हद तक आत्मनिर्भर बना लिया है। संजय के मुताबिक इस प्रणाली को लगाने के बाद लगभग 4-5 महीने उन्हें किसी अन्य स्रोत से पानी की जरूरत नहीं होती है। साधारण बारिश में भी 7 मिनट की अवधि में उनके पास लगभग 500 लीटर पानी जमा हो जाता है। लेकिन संजय ये भी बताना नहीं भूलते कि वे पानी का इस्तेमाल भी किफायत से करते हैं। दरअसल, आपूर्ति और खर्च के बीच सन्तुलन बेहद जरूरी है और पानी के मामले में तो आपको एक कदम आगे बढ़कर आने वाली पीढ़ियों को सोचकर चलना होगा। इसलिए वे किफायत पर बहुत जोर देते हैं।
आखिर वर्षाजल संरक्षण प्रणाली है क्या और इसकी लागत क्या है?
इस सवाल के जवाब में संजय बताते हैं कि दरअसल घर बनाते समय ही अगर इस प्रणाली को अपनाया जाए तो कोई अतिरिक्त खर्च नहीं आता है, केवल छत पर पतला सा, ढ़ाल वाला प्लास्टर चढ़ाना होता है। छत को साफ रखना होता है और नीचे जहां पानी जमा होता है वहां फिल्टर लगाना होता है। छत से प्राप्त बारिश के पानी को फिल्टर करते हुए संप में पंहुचाना होता है और फिर ओवरहेड टैंक में। पानी को वाटर टैंक, संप या ड्रम में स्टोर करने से पहले फिल्टर करने के लिए जो तकनीक इस्तेमाल की जाती है वो बिल्कुल पारंपरिक होती है। जिसके तहत बोल्डर्स, बड़े जेली स्टोन, छोटे जेली स्टोन इसके बाद चारकोल फिर बड़े जेली स्टोन और छोटे जेली स्टोन, कपड़े और फिर बालू की परत बिछायी जाती है। और हर पांच साल पर इन परतों को फिर से बिछाना होता है। उन्होंने मात्र 2 हजार रूपए में इस प्रणाली को लगाया था। संजय के मुताबिक बाद में भी इस प्रणाली को लगाने पर अधिकतम 5 हजार से ज्यादा खर्च नहीं आता है। रेनवाटर हारवेस्टिंग क्लब के एस विश्वनाथ को संजय पानी और उसके संग्रह के मामले में अपना पथ-प्रदर्शक मानते हैं। अनुमानत: बंगलूरू के लगभग 5 हजार भवनों में वर्षाजल संग्रह प्रणाली को अपनाया जा चुका है।
बंगलूरू में सालाना औसत बारिश लगभग 1,000 मिली मीटर तक होती है। जबकि यहां प्रतिव्यक्ति पानी की खपत लगभग 135 से 140 लीटर के बीच में है। वर्षाजल संग्रह के मार्फत 40 गुणा 60 फीट की छत से सालाना सवा दो लाख लीटर तक पानी जमा किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए इस तरह पानी के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बना जा सकता है।
वर्षाजल के मार्फत बोरवेल को भी रिचार्ज किया जा सकता है, इसके लिए सबसे पहले बोरवेल के केसिंग पाईप के पास एक मीटर लंबा, चौड़ा और 10 फीट गहरा गड्ढ़ा खोदना होता है ।और इसमें सीमेंट रिंग लगाना होता है। गड्ढ़े की तली में फिल्टर होल बनाना होता है और बोरवेल पाईप के साथ स्टील मेश वाला केसिंग पाईप खूब टाईट करके फिक्स करना चाहिए। इस तरह बोरवेल को हमेशा रिचार्ज रखा जा सकता है। इसी तरह से कुओं को भी रिचार्ज किया जा सकता है।
सिंगापूरा में कुछ लोगों ने संजय सिंह से प्रेरित होकर इस प्रणाली को अपनाया भी है पर वे चाहते हैं कि सिर्फ बंगलूरू ही नहीं बल्कि पूरे देश में ज्यादा से ज्यादा लोग इस प्रणाली को जल्द से जल्द अपनाएं।
वर्षाजल के मार्फत बोरवेल को भी रिचार्ज किया जा सकता है, इसके लिए सबसे पहले बोरवेल के केसिंग पाईप के पास एक मीटर लंबा, चौड़ा और 10 फीट गहरा गड्ढ़ा खोदना होता है ।और इसमें सीमेंट रिंग लगाना होता है। गड्ढ़े की तली में फिल्टर होल बनाना होता है और बोरवेल पाईप के साथ स्टील मेश वाला केसिंग पाईप खूब टाईट करके फिक्स करना चाहिए। इस तरह बोरवेल को हमेशा रिचार्ज रखा जा सकता है। इसी तरह से कुओं को भी रिचार्ज किया जा सकता है।
सिंगापूरा में कुछ लोगों ने संजय सिंह से प्रेरित होकर इस प्रणाली को अपनाया भी है पर वे चाहते हैं कि सिर्फ बंगलूरू ही नहीं बल्कि पूरे देश में ज्यादा से ज्यादा लोग इस प्रणाली को जल्द से जल्द अपनाएं।
अच्छा जानकारीपूर्ण आलेख.
जवाब देंहटाएंपेयजल की निरंतर कमी के चलते ऐसे ही उपाय हम सब को करने पड़ेंगे..अन्यथा पानी को ढूंढते रह जायेंगे..
जवाब देंहटाएंउपयोगी रचना -सच है बिन पानी सून !
जवाब देंहटाएंसमसामयिक और ज्ञानवर्धक आलेख।
जवाब देंहटाएंतीन भाग पानी पर देखो
न पीने को मिलता पानी
चीर के धरती के सीने को
कितना रोज निकलता पानी
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
nice
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ....इस बात से तय होता है ...पानी की अन्मोलता को समझना होगा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा और सामायिक आलेख जल ही जीवन है इस तथ्य को समझना ही नहीं होगा बल्कि आत्म सत करना होगा
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
कहते हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और जानकारीपूर्ण पोस्ट...
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून, मोती मानूष ऒर चून
जवाब देंहटाएंजागरूक करने वाला लेख....काश इसको पढ़ कर लोग कुछ सीखें ..
जवाब देंहटाएंjal bin sab kuch jal jata hai
जवाब देंहटाएंkhetihar ka bhagya bhi usko cchal jata hai
Neelesh Jain
Mumbai
kafi dino baad kuch alag or sharthak padne ko mila....swagatt hai !!
जवाब देंहटाएंJai HO Mangalmay HO
Rain water harvesting poore deshme apnaya jana chahiye..uske bina completion certificate nahi milna chahiye...
जवाब देंहटाएंyour post is different and intresting.
जवाब देंहटाएंg8 mam......i have also written on such topics plz read and leave ur valuable comments...
जवाब देंहटाएंNice post!
जवाब देंहटाएंहमने भी पिछले वर्ष अपने घर पर रेनवाटर हारवेस्टिंग यंत्र लगवाया है, अभी तक तो उससे क्या अंतर पड़ा है पता नहीं चल पाया है, शायद अगले ३-४ सालों में पता चले।
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