शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

तलाक की सिलिकाॅन वैली

 महानगरों  में तलाक के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। बंगलूरू में ही रोजाना तलाक के 25 नए मामले दर्ज हो रहे हैं।
(Published in Public Agenda )

आई टी कंपनी में काम करने वाली प्रमिला का दिन सुबह साढ़े छः बजे षुरू हो जाता है। उन्हें नौ बजे तक दफ्तर पहुंचना होता है और घर लौटते-लौटते आठ बज जाते हैं। उनके पति बालाजी भी आई टी क्षेत्र की बड़ी कंपनी में काम करते हैं और बहुत व्यस्त रहते हैं। प्रमिला दफ्तर और घर की जिम्मेदारियों के बीच खुद को रोबोट जैसी समझने लगी इसलिए नौकरी छोड़ दी लेकिन फिर अकेलेपन ने नौकरी वापस पकड़ा दी। व्यस्तता के कारण संवादहीनता अब उनके लिए संवेदनहीनता बन चुका है, अपनी षादी में उन्हें कोई जोड़ने वाला तत्व नजर नहीं आता इसलिए दोनों ने आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्जी दायर कर दी है। बीपीओ सेक्टर में काम करने वाले अजीत के लिए भी उनकी पत्नी की ओर से तलाक की मांग षाॅकिंग था, लेकिन रात की नौकरी और दिन में सोने की उनकी दिनचर्या ने उनकी पत्नी का अपनी षादी से ही मोहभंग कर दिया। आखिरकार अजीत भी तलाक के लिए तैयार हो गए। भारत की सिलिकाॅन वैली में इन दिनों रोजाना तलाक के पच्चीस नए मामले दर्ज हो रहे हैं, जिनमें ज्यादातर मामले आई टी क्षेत्र के दंपतियों हैं। लगभग 13 हजार तलाक के मामले बंगलूरू में लंबित है जिनमें पांच हजार मामले केवल 2008 में दर्ज हुए हैं। सालाना लगभग पांच हजार से अधिक नए मामले दर्ज हो रहे हैं। हांलाकि भारत में अभी भी अमेरिका और अन्य देषों के मुकाबले तलाक दर कम है। अभी भी यहां 100 षादियों में केवल एक षादी ही टूटती है लेकिन महानगरों में पिछले पांच साल में ऐसे मामलों में दोगुना इजाफा हुआ है। और बंगलूरू फैमिली कोर्ट में की सूची में आपको 20 से 30 साल की उम्र वाले जोड़ों के तलाक की अर्जी मिलेगी। यहां तक कि अपेक्षाकृत संकीर्ण सोच वाले परिवार भी अपने बेटे या बेटी के तलाक के फैसले को सहजता से स्वीकार रहे हैं।
षेशाद्रीपूरम में वकालत करने वाले प्रसन्ना कुमार कहते हैं रोजाना 20-25 तलाक के नए मामले दर्ज हो रहे हैं और गौर करने वाली बात है कि आई टी क्षेत्र में काम करने वाले ज्यादातर तलाक के मामले आपसी रजामंदी से दायर हो रहे हैं इसलिए ऐसे मामलों में फैसलें में भी देर नहीं हो रही है। प्रसन्ना बताते हैं- बंगलुरू में दस साल पहले तलाक के मामलों की सुनवाई के लिए केवल एक कोर्ट हुआ करता था आज आठ कोर्ट हैं जिनमें प्रतिदिन सौ मामलों की सुनवाई होती है। तलाक के बढ़ते मामलों के कारणों की तह में जाते हुए प्रसन्ना कहते हैं-समाज तेजी से बदल रहा है, महानगरों में पति-पत्नी दोनों काम पर जाते हैं इसलिए एक-दूसरे के लिए समय नहीं निकाल पाते, बुजुर्गो के साथ नहीं रहने के कारण कोई दवाब भी नहीं होता है। तनाव, काम का लंबा समय और दौरे उन्हें एक-दूसरे से और दूर कर रहे हैं।
जबकि एक-दूसरे से अपेक्षाएं काफी बढ़ गयी हैं साथ ही अहम का टकराव भी। यहां षादी के महज 15 दिन और 6 महीने बाद ही तलाक के लिए आवेदन करने वाले जोड़े आपको मिल जाएंगे।
बंगलूरू उच्च न्यायलय और फैमिली कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील करूणाकरण कहते हैं-मेरे पास रोजाना दस ऐसे फोन आते हैं और ज्यादातर मामले आई टी क्षेत्र के जोड़ों के होते हैं, जो आपसी रजामंदी से तलाक चाहते हैं। गलतफहमी और एक-दूसरे के लिए धैर्य नहीं होना उनके संबंधों में खटास का कारण बन रही है। करूणाकरण बहुत से मामलों में तलाक के कारणों को बेवकूफाना करार देते हैं और बताते हैं कि एक मामले में तो महिला ने सिर्फ इसलिए तलाक की अर्जी दी कि वो अपने पति के घर नहीं रहना चाहती थी, बच्चे के जन्म के बाद वो मायके से नहीं लौटी और अपने मां-बाप के साथ रहने के लिए तलाक की अर्जी दी।
इधर मैरिज कांउंसलर मित्तिनरसिंहमूर्ति कहते हैं-दरअसल, तलाक के मामलों में इजाफा षहरीकरण, और स्त्री पुरूश दोनों के आर्थिक हालात में आयी मजबूती से गहरायी से जुड़ा है।  आज की सक्षम और सषक्त महिला भारतीय समाज के पारंपरिक दोहरेपन को ज्यों का त्यों स्वीकार करने को तैयार नहीं है। तलाक के मामले पहले कम थे और अब ज्यादा हो रहे हैं इसमें कसूरवार महिला नहीं बल्कि उनकी हालत में आया सकारात्मक बदलाव है। पहले वो सह लेती थी अब विकल्प चुनने की ताकत आ रही है उनके पास। इसलिए महानगरों में तलाक के बढ़ते मामलों का सीधा-सीधा संबंध महिला सषक्तिकरण से जोड़ा जाना चाहिए। इसके अलावा अधिक उम्र में षादी, के कारण भी उनकी षख्सियत आसानी से बदलाव नहीं स्वीकार कर पा रही है। खासतौर पर महिलाएं अपने परिवेष से अलग नहीं हो पा रही हैं। दूसरी ओर आर्थिक बंधन नहीं होने पर दोनों अपने रिष्ते को बनाए रखने की कोषिष भी नहीं करते क्योंकि वो अलग-अलग भी बेहतर जिदंगी गुजार सकते हैं।

मैरिज काउंसलर कलावती चंद्रषेखर का मानना हैं कि तलाक के मामलों में बढ़ोतरी की सबसे बड़ी वजह महिलाओं का षिक्षित और आत्मनिर्भर होना है। आत्मनिर्भरता ने उनमें आत्मविष्वास भर दिया है ऐसे में षादीषुदा जीवन में उलझाव पैदा होने पर वो अलग हो जाने के विकल्प को अपना रही हैं। ऐसा नहीं है कि आज की महिलाएं षादी से जबरन बाहर आ रही है बल्कि अब वो जबरन षादी को बचाए रखने की कोषिष नहीं कर रही है। क्योंकि उनके पास पहले के मुकाबले ज्यादा आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा है। और ये उनके सषक्तिकरण का प्रतीक है। आज लड़कियों को तलाक के हालात होने पर उनके अपने मां-बाप और परिवार का भी पूरा सहयोग मिल रहा है। लेकिन वो ये भी मानती हैं कि ज्यादातर महिलाएं अपनी षादी को बचाने की भरसक कोषिष करती हैं और अंत में ही तलाक के विकल्प को अपनाती हैं। वो कहती हैं तलाक के किसी भी कारण को बेवकूफाना करार नहीं दिया जा सकता, हमें मसले को उनके नजरिये से देखने की कोषिष करनी चाहिए। हफ्ते में दो-तीन जोड़े को सलाह देने वाली कलावती कामकाजी जोड़ों के लिए षनिवार और रविवार को भी काम करती हैं और काउंसिलिंग को काफी मददगार मानती हैं। तलाक के बढ़ते मामलों का कारण वो आपसी समझ में कमी, एक-दूसरे की उम्मीदों को ज्यादा तव्वजों नहीं देना और संवादहीनता की स्थिति को मानती हैं साथ ही अत्यधिक संवाद के हालात को भी खतरनाक करार देती है। कलावती कहती हैं आर्थिक परेषानी और आजादी में खलल भी तलाक की वजह बन रही है तो दूसरी ओर आर्थिक सुरक्षा और भरपूर निजी स्वतंत्रता भी आपसी संबंधों को कड़वा बना रही है। अब तक पचास से अधिक मामलों में काउंसिलिंग कर चुकी कलावती ने बच्चों को संबंधों को जोड़े रखने वाली कड़ी पाया है और संतानहीन जोड़ों को काउंसिलिंग बावजूद अलग होते पाया है। बहरहाल, बावजूद इसके वो काउंसिलिंग को काफी मददगार मानती है और षादी तोड़ने से पहले काउंसलर के पास जाने की सलाह जरूर देती हैं।

आई टी क्षेत्र के जोड़े मैरिज कांउंसलर मित्तिनरसिंहमूर्ति के पास षादी से पहले भी आते हैं, जब उनकी मर्जी की षादी में उनके मां-बाप बाधा बनते हैं। फिर बाद में जब षादी निभाना मुष्किल होने लगता है तब भी आते हैं।  मित्तिनरसिंहमूर्ति उन्हें पहले अलग रहने और फिर बाद में उनके पास आने की सलाह देते हैं। वो कहते हैं- हम उन्हें जोड़ने की भरसक कोषिष करते हैं पर वो अलग होने की बात पहले ही तय कर चुके होते हैं। अपने अनुभवों में नरसिंहमूर्ति ने पाया कि ज्यादा सफल और सक्षम जोड़े एक-दूसरे को कमोडिटी की तरह लेने लगे हैं और मतभिन्नता होने पर सिर्फ और सिर्फ अलग होना चाहते हैं। तलाक के बड़े कारणों में वो मां-बाप का हस्तक्षेप भी मानते हैं, खासतौर पर महिलाओं के संदर्भ में। नरसिंहमूर्ति कहते हैं षादी के बाद मां-बाप और बच्चे अलग रहें तो षादियों के बचे रहने की संभावना बढ़ सकती है। हांलाकि उनके पास एक ऐसा मामला भी आया था जिसमें पति के बीमार हो जाने पर उसके व्यवहार में आए चिड़चिड़ेपन को पत्नी ज्यादा दिनों तक सहन नहीं कर पायी और तलाक के लिए अर्जी दे दी।
दूसरी ओर बंगलूरू में निम्न मध्यवर्गीय और निम्न तबके की महिलाओं में एक नयी बात भी सामने आ रही हैं। चंूकि इस तबके की महिलाएं आर्थिक तौर पर सक्षम और उतनी षिक्षित नहीं है। साथ ही उनका अपना परिवार भी कमजोर आर्थिक हालात के कारण उनकी मदद नहीं कर सकता अतः वे तलाक के बजाए अलग रहने और गुजारे के लिए अर्जी दायर कर रही है। पिछले दो साल में ऐसे मामलों में 30 प्रतिषत की दर से इजाफा हुआ है। विषेशज्ञ इसकी एक वजह इस तबके में तलाक से जुड़ी सामाजिक अस्वीकार्यता को भी मानते हैं। गौरतलब है कि कानुनन पत्नी के पास आय का कोई साधन नहीं होने और तलाक नहीं चाहने पर वो गुजारा भत्ता के लिए अर्जी दायर कर सकती है। यहां तक कि एक छत के नीचे रहते हुए भी, पति से कोई संबंध नहीं होने पर उसे आजीवन गुजारा पाने का हक है जबकि तलाक की स्थिति में एक ही बार स्थायी सेटलमेंट हो जाता है।
इधर तलाक के बढ़ते मामलों ने प्राईवेट डिटेक्टिव एजेंसियों का काम भी काफी बढ़ा दिया है। पिनिया में सेवियर डिटेक्टिव सर्विसेज चलाने वाले मोहम्मद सादिक कहते हैं- हमारे पास तलाक चाहने के सालाना 50-60  मामले आते हैं। हालांकि आपसी रजामंदी से होने वाले तलाकों में हमारी कोई भूमिका नहीं होती पर विवाहेतर संबंधों के षक की पुश्टि के लिए लोग हमारी षार्ट स्क्रीन सेवा लेते हैं। सादिक बताते हैं-बंगलूरू में इस समय लगभग ढ़ाई हजार डिटेक्टिव एंजेंसी हैं और सभी के पास भरपूर काम है।  

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत , और साथ ही मैं ये भी बताता चलूं कि यहां दिल्ली में भी हालत ये है कि सिर्फ़ एक अदालत में ही प्रति माह सौ से सवा सौ तलाक हो रहे हैं या लिए दिए जा रहे हैं और आश्चर्यजनक रूप से ग्रामीण क्षेत्र अभी भी इससे बचे हुए हैं बहुत हद तक
    अजय कुमार झा

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  2. बिल्कुल सटीक विश्लेषण, अगर जल्दी ही आभासी जगत में दोस्तों को ढ़ूढ़ने का शौक खत्म न हुआ तो ये संख्या और बड़ सकती है।

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  3. लगता है आपके लेख कृतिदेव में हैं और आप उन्हें बिना यूनीकोड में बदले ही पोस्ट कर रही हैं -
    नीचे के लिंक पर एक अच्छा फंत कन्वर्टर है -आप इस्तेमाल में लाईये
    हाँ यह आलेख भी बहुत अच्छा है मगर एक भीषण सामाजिक समस्या की और संकेत कर रहा है .
    http://www.rajneesh-mangla.de/unicode.php

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  4. सटीक विश्लेषण
    आपकी बातों से सहमत हैं
    सामाजिक समस्या पर बहुत अच्छा आलेख है

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  5. आपकी लेख से १००%सहमत ..... बहुत अच्छा लगा यह लेख.....

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  6. मै इसका कारण संस्कारों से बढती दूरी और पारिवारिक व्यवस्था में अनुसाशन की कमी और पश्चिम का अति अन्धानुकरण मानता हूँ
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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