गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

कर्नाटक में जारी लोहे के अवैध खनन पर राज्य के लोकायुक्त जस्टिस संतोश हेगड़े के साथ बातचीत।


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-कर्नाटक में लोहे की राजनीति के बारे में क्या कहेंगे आप?
बेल्लारी, चित्रदुर्गा और टूमकूर में लोहे का जमाव है और सारा किस्सा इस खजाने के ज्यादा से ज्यादा हिस्से पर अपना कब्जा जमाने की प्रतिस्पद्र्धा का है। इसकी शुरूआत वर्ष 2002 से हुई जब चीन को अपने यहां 2008 में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए भारी मात्रा में लोहे की जरूरत हंई। अचानक लोहे की कीमत आसमान छूने लगी और यहीं से लोहे की राजनीति शुरू हुई।
-खनन क्षेत्र में जारी लूट-खसोट की जांच कैसे शुरू की आपने? और कहां तक पहंुचे?
2007 में मेरे पास सरकार की ओर से लोहे के अवैध खनन और वन क्षेत्र में लोहे की ढुलाई की जांच की लिखित शिकायत आयी। इस आधार पर बेल्लारी, होस्पेट और टूमकूर में जांच करने पर हमने पाया कि यहां भारतीय खान ब्यूरो के मानकों का सीधे तौर पर उल्लंघन हो रहा है। जिसके तहत वन क्षेत्र में अतिक्रमण, वहां माल की अवैध डंपिंग, लीज क्षेत्र से बाहर और मानक गहराई से ज्यादा खनन जैसी बाते हमने देखीं। हमने लोहे की ढुलाई में भारी अनियमितता पायी। मैं किसी भी कंपनी का नाम नहीं लेना चाहुंगा, बहरहाल, मैंने पाया कि एक लाॅरी को 30 दिन में एक बार लौह-अयस्क ढुलाई करने का परमिट होता है पर पोर्ट तक पहंुचने और लौटने में मात्र एक दिन लगता है अतः  महीने एक लाॅरी 10 से 15 ट्रिप माल ढ़ुलाई करती है। राज्य सरकार के कर्मचारी घूस लेकर उस कंपनी के ट्रकों की बेरोकटोक आवाजाही सुनिष्चित कर रहे हैं।

-कर्नाटक में अवैध खनन पर अपनी रिपोर्ट का पहला हिस्सा आप सौंप चुके हैं दूसरा भाग कब तक आने की संभावना है?
 दूसरा भाग लगभग तैयार है एक महीने के भीतर हम इसे सार्वजनिक कर देंगे।
-इस रिपोर्ट में कुछ खास है?
नहीं ऐसा कुछ नहीं है, लोहे के अवैध खनन, वन अधिनियम का उल्लंघन और उसके ट्रांसपोर्टेशन में होने वाली अनियमितताओं व  भ्रष्टाचार पर पहले भाग में ही हम काफी कुछ कह चुके हैं। हां इस रिपोर्ट में हमने कर्नाटक में ग्रेनाईट के खनन में जारी अनियमितताओं और खनन व वन्य कानून के उल्लंघन पर भी फोकस किया है। बंगलूरू के पास कनकपूरा,चामराजनगर, रामनगर और बिदड़ी में ग्रेनाईट खनन में भी हमने काफी अनियमितता पायी है। इन इलाकों में पाया जाने वाला ग्रेनाईट इटैलियन ग्रेनाईट की श्रेणी का है।
-हाल ही में आपने कहा था कि आपके पास पावर नहीं है सरकार को लोकायुक्त को और शक्ति प्रदान करनी चाहिए और आपसे ज्यादा शक्ति उपलोकायुक्त के पास है?
बिल्कुल सही! मैं मौजूदा व्यवस्था से खुश नहीं हंू। और मैं इस संदर्भ में प्रक्रियात्मक बदलावा चाहता हंू। लेकिन सरकार इस बदलाव के पक्ष में तो नहीं दिखती है। दरअसल लोकायुक्त के पास सुओ मोटो अधिकार नहीं है। लोकायुक्त के जांच के दायरे में प्रथम श्रेणी के कमर्चारी  से लेकर मुख्यमंत्री तक आते हैं पर हमें बगैर लिखित िशकायत के किसी भी प्रकार की कार्रवाही का अधिकार नहीं है जबकि उपलोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र में निचले पायदान के कर्मचारी तक शामिल हैं और उसे सुओ मोटो अधिकार हासिल है। सबसे रोचक बात तो ये है कि पिछले चुनाव में भी कर्नाटक में चुनाव लड़ रहे तीन बड़े दलों के चुनावी घोषणापत्र में लोकायुक्त को और अधिक शक्तिशाली बनाने और सुओ मोटो अधिकार देने की बात थी। अब उनमें से एक दल की सरकार है पर हालात पहले जैसे ही हैं। वैसे भी हमारे काम का केवल दस फीसदी ही भ्रष्टाचार जैसे मामलों की जांच से संबंधित होता है, नब्बे प्रतिषत मामले तो हम जनता की शिकायतों मसलन पेशंन , उपचार इत्यादि से संबंधित सुलझाते हैं।
-अवैध खनन के कारण कर्नाटक के सरकारी खजाने को हुए नुकसान की भरपायी दोषियों से वसूल करने की बात कही थी आपने?
मेरा मतलब उन सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों से जुर्माना वसूल करना था जिनके भ्रष्टाचार की वजह से सरकारी खजाने को इतना बड़ा नुकसान हुआ।
-कुछ बदला?
राज्य सरकार को पहले प्रति टन लोहे पर 27 रूपए राॅयल्टी मिलती थी अब यह 200 रूपए हो गई है। जबकि 2006 और 2007 में राज्य सरकार को 27 रूपए रायल्टी देकर इसी लौह-अयस्क का 6,000 से 7,000 हजार रूपए प्रति टन के हिसाब से निर्यात होता था। यानी सरकार को पहले ही करोड़ों का नुकसान हो चुका है।
-पर्यावरण और वन मंत्रालय के मुताबिक 1980 वन अधिनियम के बाद इसके उल्लंघन के कुल 1309 मामले अभी तक अनुमोदित हुए हैं और कुल 100,871 हक्टेयर वन क्षेत्र इसके कारण नष्ट हुआ है और इसमें केवल कर्नाटक से ही 10 फीसदी से कुछ ज्यादा वन क्षेत्र नष्ट हुआ है?
- मैं इस बात से सहमत हंू, खनन से पर्यावरण और वन क्षेत्र बहुत प्रभावित है। आज इस इलाके से स्लाॅग बीयर पूरी तरह से गायब हो चुके हैं। चंदन के पेड़ भी खत्म हो गए। और इसके लिए जिम्मेदार खनन लीज प्रदान करने में होने वाली धांधली ही है। पहले प्रोस्पेक्टिंग मानचित्र के आधार पर लीज मिलता था अब केवल काल्पनिक मानचित्र जमा करके भी लीज हासिल कर लेते है न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार की ओर से उस क्षेत्र की क्रास चेकिंग की जाती है। इसके अलावा एक और वजह रेजिंग काॅन्ट्रेक्ट भी है जिसके तहत लीज मिलने के बाद उसे थर्ड पार्टी को बेच दिया जाता है। जिसे सिर्फ और सिर्फ धातू के अधिकतम दोहन से मतलब होता है। राज्य सरकार ने केवल 158 खनन लीज प्रदान किया है जबकि ढ़ाई सौ से ती सौ जगहों पर खनन हो रहा है। जिस तेजी से यहां खनन हो रहा है उसके आधार पर अनुमान है कि 30 साल तक चलने वाला यह खजाना 6 साल में ही खत्म हो जाएगा।
-येदुरप्पा सरकार के रूख के बारे में आपकी क्या राय है?
सरकार को हम अपनी आधी रिपोर्ट सौंप चुके हैं लेकिन अभी तक उसके मुताबिक कार्रवाही नहीं हुई है। सरकार कितनी मजबूर है यह कुछ महीने पहले ही सब देख चुके हैं। अभी तक इस सदंर्भ में कुछ ठोस नहीं हुआ है।
-आपको क्या लगता है कैसे अवैध खनन और इस क्षेत्र में जारी भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है?
हमने तो अपनी रिपोर्ट दे दी, सरकार को उसके मुताबिक एक्शन लेना है। हालात सभी के सामने हैं। मैं किसी भी विशेष व्यक्ति, कंपनी या राजनीतिक दल का नाम लेना नहीं चाहंूगा। पर ये जरूर कहंूगा कि खनन क्षेत्र में पूरे देश में खासतौर पर कर्नाटक और आन्ध्रप्रदेश में पूरी तरह से राजनीति हावी है। मैंने निर्यात बंद करने का सुझाव दिया था, मेरी समझ से निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगाकर इस क्षेत्र में जारी लूट-खसोट को नियंत्रित किया जा सकता है। सरकार को कैप्टिव खनन लीज यानी खनन करने वाली कंपनियों के लिए वहां कारखाना लगाना अनिवार्य हो इस व्यवस्था के तहत खनन लीज देना चाहिए। इससे हालात बदल सकते हैं लोगों को रोजगार मिलेगा, केन्द्र सरकार को सेंट्रल एक्साईज टैक्स और राज्य सरकार को वैट के जरिए हजारों करोड़ों की आय होगी। साथ ही देश की बहुमुल्य संपदा देश में ही रहेगी। मेरे विचार से केवल सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र सरकार ही इस पर रोक लगा सकती है।

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